हरियाणा में शिक्षा से जुड़ा बड़ा खुलासा

बच्चों को जो हम शिक्षा में परोस रहे हैं उसके तथ्य ही उपलब्ध नहीं, शिक्षण  पर बड़े सवाल?


रणघोष खास. हरियाणा से


एनसीईआरटी की पुस्तकों में जो विद्यालय में पढ़ाया जा रहा है उसमें से अधिक को लेकर तथा ही उपलब्ध नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हम आने वाले भविष्य को गलत इतिहास की जानकारियां दे रहे हैं। मुगलों से जुड़े एक चैप्टर के प्रसंग को लेकर आरटीआई के माध्यम से चैप्टर में दी जानकारियों के तथ्य बारे मांगी आरटीआई में तथ्यों बारे कोई भी सूचना परिषद के पास उपलब्ध नहीं होने की जानकारी दी गई। बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा में इस गैर जिम्मेदाराना रवैये को लेकर शिक्षा पद्धति पर सवाल उठने लाजिमी है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद (एनसीईआरटी) ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत इतिहास के एक चैप्टर के प्रंसग को लेकर मांगी गयी सूचनाओं के जवाब में कहा है कि परिषद के पास इस बारे में सूचना उपलब्ध नहीं है। शिवांक वर्मा द्वारा कक्षा 12 की इतिहास के एक चैप्टर में मुगल शासकों शाहजहां और औरंगजेब द्वारा युद्ध के दौरान ध्वस्त हुए मंदिरों की मरम्मत के लिए अनुदान दिये जाने के पैराग्राफ को लेकर साक्ष्य की मांग एनसीईआरटी से आरटीआई के तहत की गयी थी। साथ ही, आरटीआई के माध्यम से शिवांक ने यह भी जानना चाहा था कि इन शासकों द्वारा किन-किन मंदिरों की मरम्मत के लिए अनुदान दिया गया था। इन दोनो ही प्रश्नों के जवाब ने एनसीईआरटी ने सूचना उपलब्ध न होने की जानकारी दी है।

ऐसे उठा मामला—

कक्षा 12 की इतिहास की पुस्तक “थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री पार्ट II” के पेज संख्या 234 पर मुगल शासकों शाहजहां एवं औरंगजेब के बारे में दिये गये एक पैराग्राफ को लेकर शिवांक वर्मा द्वारा 3 सितंबर 2020 को मांगी गयी सूचना का जवाब एनसीईआरटी के सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग के विभागध्यक्ष एवं जनसूचना अधिकारी प्रो. गौरी श्रीवास्तव की तरफ से जानकारी दे दी गयी थी। इसके बाद कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्कॉलर रहीं और शिक्षाविद डॉ. इंदू विश्वनाथन ने बुधवार, 13 जनवरी को एनसीईआरटी के लेटर को ट्वीट करते हुए कहा, “यह अविश्वसनीय रूप से घातक साक्ष्य है। एनसीईआरटी की पुस्तकों को विद्यालयी शिक्षा के लिए बेंचमार्क माना जाता है। सिविल सेवा जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में भी इन पुस्तकों से तैयारी करने की सलाह एक्पर्ट्स द्वारा दी जाती रही है। ऐसे में डॉ. इंदू विश्वनाथन के ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गयी है। सेवानिवृत आईएएस अधिकारी संजय दीक्षित ने ट्वीट किया, “एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के इतिहास विभाग द्वारा यूपीए 1 के कार्यकाल के दौरान वामपंथी प्रचार के बीच लिखा गया था। इन पुस्तकों का ‘बोनफायर’ काफी समय से लंबित है।”

वहीं, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अधीन शिमला स्थित शोध संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी (आईआईएएस) के निदेशक मकरंद आर. परांजपे ने ट्वीट करते हुए प्रश्न उठाया, “एनसीईआरटी की फाइलों में सूचना उपलब्ध नहीं है, यानि इस तथ्य का अस्तित्व ही नहीं है? मूल प्रश्न यह है कि हमारी इतिहास की किताबों में लेखकों ने पहले तो ऐसे संदेहास्पद दावों को शामिल ही क्यों किया और फिर उन्हें ऐसा करने के निर्देश किसने दिये? उधर हरियाणा में शिक्षा को किस कदर  बर्बाद  किया जा रहा है इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि हरियाणा के स्कूलों में टीचरों का भारी टोटा, 34 हजार शिक्षक कम, फिर भी नई भर्ती नहीं की जा रही। ऐसे में शिक्षण की ऊंचाइयों को कैसे छुआ जा सकेगा। हरियाणा के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का बड़ा टोटा है। नवंबर 2020 के स्कूल शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार पहली से बारहवीं तक विभिन्न श्रेणियों के शिक्षकों के 34 हजार 850 पद खाली हैं।स्कूल शिक्षा विभाग भर्ती पर बल देने के बजाय रेशनेलाइजेशन कर आंकड़ों के मायाजाल में उलझाता चला आ रहा है। छिटपुट भर्तियों को छोड़ दें तो बीते कई साल से बड़ी भर्ती नहीं हुई। टीजीटी, पीजीटी के 10-10 हजार से अधिक पद खाली पड़े हैं। जेबीटी के खाली पदों का आंकड़ा 6 हजार से ऊपर है। जेबीटी की आखिरी भर्ती 2012 में निकाली गई थी, 2014 में इसका परिणाम घोषित हुआ। भर्ती विवादों में फंसी और नियुक्तियां 2017 में दी गईं। टीजीटी, पीजीटी की भर्ती भी प्रदेश में लंबे समय से बड़े स्तर पर नहीं हुई है। इक्का-दुक्का भर्तियों को छोड़ दिया जाए तो इन दोनों श्रेणियों के रिक्त पदों को भरने में कोई ज्यादा रुचि नहीं दिखाई गई। इससे स्कूलों शिक्षकों की कमी गहराती जा रही है। इसका असर विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम पर पड़ना लाजिमी है।  हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के अध्यक्ष नवदीप चंद्र भारती ने कहा कि कोरोना के कारण पहले ही विद्यार्थियों की पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ा है। मेवात के स्कूलों में शिक्षक के 9 हजार से अधिक पद हैं, जिन पर करीब साढ़े तीन हजार शिक्षक ही कार्यरत हैं। पचास फीसदी स्कूलों में मुखिया ही नहीं हैं, अतिरिक्त प्रभार देकर काम चलाया जा रहा है। भारती ने मांग की कि सरकार जल्दी खाली पदों को भरे।

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