10 साल कैबिनेट मंत्री रहे डॉ बनवारीलाल टिकट को तरस रहे हैं, यह कैसा रिपोर्ट कार्ड
रणघोष खास. बावल से ग्रांउड रिपोर्ट
हरियाणा विधानसभा चुनाव में पहली बार बावल की सीट को लेकर भाजपा में उलझन में नजर आ रही है। इसलिए पहली सूची में इस सीट को होल्ड पर रखा गया है। यहां डॉ. बनवारीलाल पिछले 10 सालों से भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री पद पर रहे हैं। जो किसी भी नेता के राजनीति जीवन में इससे बड़ा तोहफा नही है की जिसने जीवन में दो बार चुनाव लड़ा और दोनों बार सरकार में बड़े ओहदे पर रहे। इसके बावजूद इस चुनाव में टिकट के लिए तरसना यह साबित करता है कि या तो डॉ. बनवारीलाल का राजनीति जीवन संघर्ष में नही रहा जिससे वे सबक लेकर समय रहते जमीनी हकीकत को समझ लेते। या फिर जरूरत से ज्यादा शरीफ होने की प्रवृति उनके लिए घातक बन गईं जिसकी वजह से उनके इर्द गिर्द रहकर सत्ता की मलाई खाने वाले अपना खेल करते रहे ओर वे तमाशा बनकर देखते रहे। इसमें कोई दो राय नही की पिछले 10 सालों में बावल की तस्वीर को बदलने में डॉ. बनवारीलाल विशेष भूमिका में रहे लेकिन वे लंबे समय तक ऐसे लोगों से भी घिरे रहे जिन्होंने बावल से ज्यादा अपना विकास कर लिया। जिसका शोर अभी तक सड़कों पर मचता आ रहा है। जहां तक केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का उनके कंधे से हाथ हटा लेने का सवाल है। राव के लिए ऐसा करना नई बात नही है। वे अपनी पिछली 50 साल की सफल राजनीति में समय समय पर ऐसा करते रहे हैं। ऐसे नेताओं की लंबी सूची है जिसकी पहचान राव की वजह से हुई ओर खत्म भी राव के हिसाब से। राव बखूबी समझते हें की राजनीति में किसी को लंबा चलाने का मतलब सिर पर नचाना है। इसलिए वे अपने पुराने तजुर्बे से उसको उतनी ही हैसियत में रखते हैं की भविष्य में सिरदर्द नही बन जाए। इसी सोच में इस बार नंबर डॉ. बनवारीलाल का आ गया है। भाजपा के लिए इस सीट पर सबसे बड़ी चुनौती यह है की उनके पास डॉ. बनवारीलाल के अलावा कोई ऐसा बड़ा चेहरा नही है जो लंबे समय तक जनता के बीच में जाकर उनकी आवाज बना हो। जितने भी नाम सामने आ रहे हैं वे राव के दरबार से आशीर्वाद लेकर चर्चा बटोर रहे हैं। उन्हें पता है की इस सीट पर राव इंद्रजीत सिंह का दखल ही हार जीत की वजह बनेगा। उधर भाजपा कहने को खुद को इतना बड़ा संगठन मानती है लेकिन पिछले 10 सालों में सत्ता में रहते हुए भी हरियाणा की सभी सीटों पर अपने मजबूत उम्मीदवार तक तैयार नही कर पाई। उसे ले देकर क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावशाली नेताओं के रहमों करम पर रहना पड़ रहा है। कुल मिलाकर चुनाव के बचे 20-25 दिनों में भाजपा इस सीट को कैसे जीत पाएगी यह देखने वाली बात होगी। इतना जरूर है की हरियाणा में भाजपा 10 साल तक सरकार में रहने के बावजूद अलग अलग वजहों से जमीनी स्तर पर पूरी तरह से समझदार नही हो पाई है यह इस बार के टिकट बंटवारे को लेकर हो रही देरी से साबित हो गया है।