सीधी सपाट बात : समझ में नही आता भाजपा- कांग्रेस सर्वे- पैनल जैसे नाटक क्यों करती है..

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की तरफ से दी जाने वाली टिकटों से इतना तो साफ हो गया है की टिकट को लेकर किए जाने वाले सर्वे या बनाए जाने वाले पैनल महज जनता ओर कार्यकर्ताओं के दिमाग का रायता बनाने के लिए ड्रामेबाजी के अलावा कुछ नही है। चंडीगढ़ और दिल्ली में टिकटों को फाइनल करने वालों के मूड के हिसाब से तय होता है की किसे उम्मीदवार बनाना है ओर किसका पत्ता साफ करना है। जिसकी जितनी पहुंच टिकट उसके उतनी करीब। मैदान में तस्वीर क्या है इससे किसी को कोई मतलब नही है बस असरदार चेहरों की हाथ जोड़े, विनती करते और शत प्रतिशत हाजिरी वाले उम्मीदवारों से मुलाकात का दौर जारी रहना चाहिए। यह टिकट मिलने या पक्का होने का सटीक फार्मूला है। इसलिए बुधवार शाम को भाजपा की जारी 67 सीटों में कुछ चेहरे ऐसे थे जो भाजपा के मेंबर तक नही थे। यहां तक की उन्होंने कभी जीवन में भाजपा कार्यालय जाकर नही देखा। उन्हें अपने असरदार नेता के आशीर्वाद से टिकट मिल गईं। अब यहा पर सर्वे या पैनल कहा चला गया। अगर ऐसे ही टिकट देने का मापदंड है तो मीडिया में आए दिन झूठे दावों से सने समाचार क्यों प्रकाशित कराए। दरअसल राजनीति एक ऐसा शब्द है जिसका अपना कोई मूल्य या सिद्धांत नही है। उसका एक मात्र मकसद किसी तरह सत्ता पर कब्जा करना है। इसके लिए वह किसी भी समय अपने बनाए नियमों को ताश के पत्तों की तरह बिखेकर कर आगे बढ़ ती है। जिन्हें चुनाव में बागी कहा जाता है उसमें अधिकांश जमीनी स्तर की हैसियत रखने वाले होते हैं इसलिए निर्दलीय बनकर मैदान में उतर आते हैं। कुल मिलाकर इतना तो साफ हो गया की संगठन के नाम पर जिसकी जितनी चल रही है वही  संगठन का संविधान है ओर कानून है । बाकि पार्टी कार्यालयों में समय समय पर होने वाली कार्यशाला में परोसे जाने वाली सामग्री है जिसका चुनाव के बाद पांच साल तब तक इस्तेमाल किया जाता है जब तक अगला चुनाव नही आ जाए।