चुनाव में सबसे पहले ईमानदारी- वफादारी के कपड़े उतरने लगते है..

Pardeep ji logoरणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

देश में चुनाव छोटा हो या बड़ा। एलान होते ही सबसे पहले ईमानदारी और वफादारी के कपड़े उतरने शुरू हो  जाते हैं। कही जबरदस्ती होती है तो कई आपसी रजामंदी। तब तक उतरते हैं जब तक टिकट ओर कुर्सी ना मिल जाए। इसलिए गौर से नंगी आंखों से देखिए टिकट को लेकर प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में किस कदर मारामारी, अफरातफरी, बगावत का नंगा खेल शुरू हो जाता है। जो नेता पार्टी को मां की तरह मानते आ रहे थे चुनाव में टिकट नही मिलते ही वह डायन नजर आने लगती है। इसी तरह पार्टी की नजर में चुनाव से पहले जो कार्यकर्ता अर्जुन की तरह महारती, भीम जैसा बलशाली और युधिष्ठिर की तरह समझदार लग रहा था। अचानक टिकट की सूची से उसे ऐसे गायब कर दिया जाता है मानो व दुर्योधन- दुशासन की प्रवृति में लिप्त रहा हो।

 महाभारत में सिहांसन के लिए कौरव और पांडवों में चले टकराव के बीच द्रोपदी चीरहरण की घटना कई बार पढ़ी और सुनी हैं। राजनीति में सत्ता हासिल करने  के लिए कदम कदम पर  मर्यादा- गरिमा- सम्मान ओर स्वाभिमान का चीरहरण तब तक होता रहता है जब तक वह टूटकर बिखरकर समर्पण नही कर दे। इसलिए चुनाव को हर बार की तरह  वोट डालकर नई सरकार बनाने की मानसिकता से मत देखिए।  इसके पीछे चलने वाले शैतानी खेल, साजिश, छल कपट को समझिए। महसूस करेंगे की इस हमाम में किसी के शरीर पर कपड़े नही बचे हैं। नेता समाजसेवा के नाम पर मुजरा करते हुए नजर आते हैं तो मीडिया उनका दलाल बनकर चुनाव के बाजार में निष्पक्ष, बेबाक और  जनता की आवाज के नाम पर उनके लिए ग्राहको की भीड़ जुटाता है। सबकुछ सभी की नजरों के सामने सर्व सम्मति से होता है इसलिए चुनाव में यह नजारा मान्यता प्राप्त है। इसके खिलाफ जाकर कोई आवाज उठाए तो उसे सभी मिलकर मानसिक दिवालिया घोषित कर देते हैं। इसलिए समय आ चुका है की हम भारतीय लोकतांत्रिक  प्रणाली में अपने विश्वास को कायम करते हुए निराश होने की बजाय चुनाव में राजनीति की चलती आ रही परपंरागत सोच ओर विचारधारा को एक्सपायरी डेट मानकर कूड़ेदान में डाल दे। इसे पांच साल में एक बार लगने वाला चुनावी मंडी माने। जिसमें राजनीतिक दल अपनी दुकानें खोलकर अपना माल बेचने के लिए घोषणा पत्र के नाम पर कई तरह की स्कीमें लांच करते हैं। मीडिया उनकी स्कीमों पर अपनी पॉलिश लगाकर अलग अलग तरीकों  से उसे बेचने का काम करता है। जनता भी ग्राहक की शक्ल में बड़ी चतुराई से मुफ्तखोरी के चलते सभी पर झपटा मारती हुई नजर आती है। चुनाव के बाद जब माल का पैकेट खुलता है तब तक वो चुनावी ठगी का शिकार हो चुके होते हैं। इसलिए इस बाजार को देखकर बहकिए मत संभलकर कदम रखिए। आपको चुनाव के बाद भी उसी समाज में रहना है जिस समाज में आपकी परवरिश हुई है।