चुनाव रामलीला की तरह, कब सीता रावण और रावण, राम बन जाए कुछ नही पता

टिकट राव समर्थकों को मिले या विरोधियों को, इसमें नई बात क्या है.. जनता का काम ताली बजाना है..


रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

जब तक यह लिखा हुआ लोगो तक पहुंचेगा टिकटें अपने ठिकानों पर पहुंच चुकी होगी। दक्षिण हरियाणा में छोटे बड़े चुनावों को लेकर एक शगूफा कई सालों से चलता आ रहा है। टिकट यहा के सबसे पुराने राजनीतिक परिवार केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के दिलो दिमाग से बंटेगी या उनके खिलाफ जाकर निर्णय लिया जाएगा। देश की आजादी और हरियाणा गठन के बाद से टिकटों का बंटवारा इसी मानसिकता से आज तक चलता आ रहा है। इसमें नई बात कुछ नही है। कुछ दिन शोर मचता है और बाद में आदतन सबकुछ भूला दिया जाता है। जब विकास को लेकर सवाल किए जाते हैं तो जवाब हर समय  हाजिर रहता है राव साहब की सीएम से नही बनती, सरकार में उनकी नही चलती, वे क्या करें। जिन्हें टिकट नही मिली ओर पार्टी में रहकर उनकी सीएम से ठीक बन रही है या सरकार में चलती है तो वे विधायक या मंत्री नही बनने का हवाला देकर अपना दुखड़ा रोना शुरू देते हैं। गलती से विपक्ष का विधायक बन गया तो उसे पांच साल सरकार नही होने की सहानुभूति मिल जाती है। इसलिए कोई उनसे सवाल नही करता।  कई सालों से पांच साल की इस राजनीति डिग्री में इसी तरह का सिलेबस चलता आ रहा है।   पहले कांग्रेस ने इसे लागू किया हुआ था अब भाजपा ने उसे पूरी तरह से अपना लिया है। सभी का एक ही मकसद है कुर्सी से सत्ता पर कब्जा। चुनाव के समय राजनीतिक दलों में टिकट में पारदर्शिता, योग्यता ओर मजबूत उम्मीदवार का चयन करने को लेकर बहुमंजिला इमारतों की तरह फलोवर वाइज बनी कमेटियों का स्तर उसी तरह का है जिस तरह रामलीला में मंच के पीछे खड़े मेकअप वाले भाई का। जो  सीन के हिसाब से कलाकारों का चेहरा बदलना रहता है। कुछ जगह तो राम को ही सीता ओर सीता को भी रावण का रोल कराने में इस मेकअप वाले भाई का हुनर काम करता है। जनता का काम सिर्फ ताली बजाना होता है। जब किसी को टिकट मिल जाए तब भी उसे ताली बजानी है। किसी की कट जाए तो सहानुभूति में उसके लिए भी ताली बजानी है। जगह जगह गंदगी के ढेर हो, टूटी सड़कें ओर जाम के हालात हो। विधायक और मंत्री आए ओर मौके पर बड़े बड़े वायदे कर जाए तब भी उसे ताली बजानी है। इसके बावजूद कुछ नही हो ओर विपक्ष का नेता आए तो भी उसे ताली बजानी है। कुल मिलाकर जनता का काम ताली बजाने  के अलावा कुछ नही है ओर नेताओं का काम है उनसे ताली बजवाना। बात खत्म..। यही विकास है और यही राजनीति का मूल चरित्र।