भाजपा समय रहते अपना घर संभाल ले बड़ी बात होगी

 कहीं भाजपा का भूगोल तो नही बिगाड़ रही राव इंद्रजीत- धर्मबीर जोड़ी


रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

हरियाणा में देश की मिलेनियम सिटी गुरुग्राम के सांसद और लगातार पांचवीं बार  बिना प्रमोशन के केंद्र में राज्य मंत्री बनते आ रहे राव इंद्रजीत सिंह को 2024 के प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के अंदर बाहर अनेक  तरह की  खामिया नजर आनी शुरू हो गई है। जिस पर भिवानी- महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से जीत की हैट्रिक लगा चुके चौधरी धर्मबीर सिंह भी सहमति की मोहर लगा रहे हैं। दोनो के सुर और ताल भाजपा से कहीं मेल नही खा रहे हैं। उनकी जुबान से निकल रहे शब्द यह साफ इशारा कर रहे हैं की वे बड़े चुनाव में इसलिए शांत रहे की वे खुद चुनाव लड़ रहे थे। अब छोटे यानि विधानसभा चुनाव में वे 20 से 25 सीटों पर अपना दांव चलाएगे यह भी तय है। इसलिए समय रहते दोनो दिग्गज अपने हिसाब से उन सीटों की जमीन को नाप रहे हैं जहां उनका फीता काम करता है। इसलिए यहां दखलअंदाजी होने पर वे टकराव के मूड में भी साफ नजर आ रहे हैं। उन्हें यह ताकत  केंद्र व राज्य में कमजोर हुई भाजपा के मौजूदा हालातों से मिली है जिसे वे अपने लिए बेहतर अवसर मान रहे हैं। यहा बताना जरूरी है की दोनो ही नेताओं की राजनीति परवरिश 2014 तक कांग्रेस में हुई है। भिवानी में जिस चौधरी बंसीलाल परिवार के खिलाफ  चौधरी धर्मबीर सिंह की राजनीति का जन्म हुआ। वह परिवार अब पूर्व मंत्री किरण चौधरी व पूर्व सांसद ऋुति चौधरी के तौर भाजपा में आकर इस नेता के सिर पर नाचने लगा है। जाहिर है बैचेनी होगी। इसी तरह गुरुग्राम व महेंद्रगढ़ की राजनीति में लंबे समय से अपनी हुकुमत चलाते रहे राव इंद्रजीत सिंह को भी भाजपा ने बेहद ही चालाकी वाली समझदारी से चारों तरफ से उनके विरोधियों को मजबूत कर पाबंद किया हुआ है। नारनौल से उनके समर्थक विधायक ओपी यादव को मंत्रीपद से हटाकर उनके धुर विरोधी  नांगल चौधरी से विधायक डॉ. अभय यादव को राज्य में मंत्री बनाना, रेवाड़ी- बादशाहपुर समेत अधिकतर सीटों पर उनके राय मशवरे पर गौर नही करना और विशेष तौर से तमाम प्रयासों के बावजूद पिछली दो योजनाओं में उनकी बेटी आरती राव को टिकट नही देना यह बताता है की लगातार भाजपा से जीतने के बावजूद राव का चेहरा खिलखिलाने की बजाय हार से भी ज्यादा उदास नजर आ रहा है।   

अब सवाल यह उठता है की जहां जहां ये दोनो नेता जा रहे हैं वहां की जनता इनकी बातों पर कितना गौर करेगी। उन्हें 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद अब भाजपा में खोट नजर आ रहा है वह भी अलग अलग  कारणों से। यह सवाल भी भीड़ से निकलेगा क्या ये दोनों नेता अपने दम पर संसदीय सीट जीतकर आए हैं। अगर आए हैं तो चुनाव के समय मोदी के नाम वोट मांगे अब इसका श्रेय अपने समर्थकों को  दे रहे हैं। क्या यह प्रश्न नही उठेंगे यह उनका किस स्तर का राजनीति संघर्ष है। लोकसभा चुनाव तक सबकुछ अच्छा लग रहा था। एक महीने बाद अब उन्हें इसी पार्टी के भीतर दाल में काला ज्यादा नजर आ रहा है। ऐसा नही है की धर्मबीर विशेषतौर से राव इंद्रजीत पहली बार अपने विरोध के सुर को सार्वजनिक कर रहे हैं। वे लगातार दबाव की करते आ रहे हैं। इसलिए उनके बयानों पर गौर करे तो यह साबित हो रहा है की वे मौका लगते ही भाजपा को उसी तरह छोड़ने के सबूत पेश करते रहे हैं जिस तरह वे कांग्रेस को विदा करते समय छोड़ आए थे। यह भी हकीकत है 10 सालों से राज कर रही भाजपा सभी 90 विधानसभा सीटों पर अभी तक अपनी जमीन को मजबूत नही कर पाई है। उन्हें जीतने के लिए अभी तक दूसरी पार्टियों में तोड़फोड़ करनी पड़ रही है जिसका खामियाजा भी एक समय बाद उसे चुकाना पड़ रहा है। भाजपा हाईकमान यह भी  बखूबी समझता है की पार्टी मिजाज के खिलाफ जा रहे दोनो ही नेता अपने इलाकों में मजबूत हैसियत रखते हैं। वे कम ज्यादा हवा का रूख बदल सकते हैं। हालांकि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने नायब सैनी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का एलान कर यह साफ इशारा कर दिया था की कोई भ्रम में ना रहे भाजपा दबाव में फैसले लेगी। यह कांग्रेस नही है जिसका आज तक अपना संगठन तक नहीं बन पाया है। कुल मिलाकर मौजूदा राजनीति माहौल में एक तरफ भाजपा सरकार और हाईकमान पूरी तरह से डैमेज कंट्रोल में लगी हुई है वही राव-धर्मबीर की जोड़ी अपने राजनीति भूगोल को सही दिशा में ले जाने में जुट गई हैं।  देखना यह है की विधानसभा चुनाव में किसका भूगोल बिगड़ता या बनता है। यह देखने वाली बात होगी।