“यूक्रेन को झटका: NATO देश पीछे हटे, यूरोपीय सैन्य मदद पर संकट | अमेरिका-रूस समीकरण बदला”

“यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को सैन्य मदद देने की योजना से पीछे हटने का संकेत दिया है। NATO की रणनीति में बदलाव, अमेरिका-रूस के बढ़ते संबंध और युद्धविराम वार्ता के प्रभावों को जानें।”

नई दिल्ली: यूरोपीय देशों समेत NATO गठबंधन के सदस्य देश अब अपनी उस रणनीति से पीछे हटते दिख रहे हैं, जिसके तहत यूक्रेन को सैन्य सहायता देने और संभावित रूप से सैनिकों की तैनाती करने की योजना बनाई गई थी। यह कदम ऐसे समय में आया है जब वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं।

यूरोपीय देशों का यू-टर्न क्यों?

यूरोपीय देशों द्वारा अपने रुख में यह बदलाव अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते संवाद और यूक्रेन की कमजोर होती सैन्य स्थिति के चलते देखा जा रहा है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, कई यूरोपीय देशों के नेता अब ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा प्रस्तावित सैन्य हस्तक्षेप की चुनौतियों पर पुनर्विचार कर रहे हैं और इस योजना को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी कर रहे हैं।

एक अनाम यूरोपीय राजनयिक ने रॉयटर्स से कहा, “जब यूक्रेन की सैन्य स्थिति बेहतर थी, तब सैनिकों को भेजने की योजना प्रभावी लग रही थी। लेकिन अब, जमीनी हालात बदल गए हैं और अमेरिका-रूस के समीकरण बदलने से यह योजना अब पहले जैसी आकर्षक नहीं रही।”

पेरिस योजना हुई कमजोर

11 मार्च को फ्रांस की राजधानी पेरिस में 30 से अधिक देशों के सैन्य अधिकारियों की बैठक हुई थी, जिसे पेरिस योजना कहा गया। इस बैठक का उद्देश्य एक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बल का गठन करना था, जो युद्धविराम के बाद यूक्रेन में रूस के संभावित आक्रमण को रोक सके। हालांकि, इस योजना में अमेरिका को शामिल नहीं किया गया था। अब, बदले हुए हालात में, यूरोपीय देशों के इस पहल से पीछे हटने की संभावना बढ़ गई है।

अमेरिका-रूस में नज़दीकियां बढ़ीं

एक अन्य बड़ी वजह यह है कि अमेरिका और रूस के बीच कूटनीतिक संवाद में सुधार हो रहा है। हाल ही में, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच टेलीफोनिक वार्ता हुई, जिसमें रूस ने आंशिक युद्धविराम पर सहमति जताई। रूस ने यूक्रेन के प्रमुख ठिकानों पर हमले रोकने का भी वादा किया है।

विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन रूस के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम कर रहा है और इसमें व्यापारिक प्रतिबंधों में ढील देने की संभावनाएं भी शामिल हैं। इस नए समीकरण ने यूरोपीय देशों को सतर्क कर दिया है और वे अब यूक्रेन के लिए अपनी सैन्य रणनीति को फिर से परख रहे हैं।

यूक्रेन के लिए मुश्किलें बढ़ीं

यूक्रेन के लिए यह घटनाक्रम एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। एक ओर, युद्ध के मैदान में रूस की स्थिति मजबूत होती दिख रही है, वहीं दूसरी ओर, उसे पश्चिमी सहयोगियों से अपेक्षित समर्थन नहीं मिल रहा।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यूरोपीय देश अपनी सैन्य सहायता योजनाओं से पीछे हटते हैं, तो यह यूक्रेन की रक्षा रणनीति के लिए एक गंभीर चुनौती साबित हो सकता है।

निष्कर्ष

NATO और यूरोपीय देशों के इस कदम से यूक्रेन की सुरक्षा को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं। जबकि अमेरिका और रूस के बीच कूटनीतिक संवाद बढ़ रहा है, यूरोपीय नेता अब यूक्रेन को सैन्य सहायता देने पर पुनर्विचार कर रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह यूक्रेन की सुरक्षा नीति को प्रभावित करेगा या फिर यूरोपीय देश कोई नई रणनीति अपनाएंगे।