मीडिया में छिपे इस बेधड़क सच को भी स्वीकार करिए..

नंबर वन, निष्पक्ष, बेबाक, सत्य की कसौटी कहने वाले मीडिया को खुद पर शक क्यो हैं ? 


रणघोष खास. पाठक की कलम से

हरियाणा विधानसभा चुनाव में सच को पैकेज में बेचने के बाद देश के सबसे बड़े त्यौहार दीपावली पर भी खुद को राष्ट्रीय कहने वाला मीडिया अपनी हरकतों से बाज नही आ रहा है। समझ में नही आ रहा की इन्हें राष्ट्रीय मीडिया किस आधार पर कहते हैं। क्या इनकी सोच राष्ट्रीय होती है, क्या ये सरकार के तमाम दबावों से आजाद रहते हैं, क्या इनकी पहुंच सबसे ज्यादा होती है। क्या सचमूच में ये पूरी तरह से निष्पक्ष और सत्य की कसौटी पर खरा उतरते हुए नजर आते हैं। अगर ऐसा है तो फिर एग्जिट पोल में यह पूरी तरह से बेनकाब कैसे हो जाते हैं।

आइए इसे सिलसिलेवार तरीके से साक्ष्यों के साथ समझते हैं। हाल ही में हरियाणा में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। चुनाव से पहले उसके बाद बीच में ओर अंत में कुछ राष्ट्रीय समाचार पत्रों व चैनलों ने सबसे पहले खुद को कथित तौर पर सच का वारिस घोषित करना शुरू कर दिया। अभी तक यह सिलसिला जारी है।  इस दौरान प्रत्याशियों के प्रचार प्रसार की खबरें इन मीडिया में प्रकाशित होती रही। एक तरफ यही मीडिया अपने खुद के विज्ञापन प्रकाशित कर यह दावा करता रहा की चुनाव में वह  बेबाक, बेधड़क, नो पेड न्यूज ओर निष्पक्ष कवरेज कर रहा हैं जबकि असल में समाचार उन्ही उम्मीदवारों के प्रकाशित हो रहे थे जो उनके बनाए पैकेज को खरीद रहे थे। बहुत से प्रत्याशियों का पैकेज इस लिहाज से ज्यादा था की उनके खिलाफ किसी भी तरह की निगेटिव न्यूज का प्रकाशन नही होगा। चाहे विरोधी कितने ही प्रमाण पेश कर दे। ऐसा हुआ भी। इसी तरह जिन प्रत्याशी की पैकेज खरीदने की हैसियत नही थी ओर वह बेहद मजबूत नजर आ रहे थे उसके बावजूद उनकी एक लाइन तक नही लगी। दूसरा चुनाव आयोग में विज्ञापन से संबंधित जो बिल जमा हुए उसमें रेट ना के बराबर लगाए गए ओर  असल में वसूली बिल से 10 से 20 गुणा ज्यादा की गईं। इसी तरह अब देश के सबसे बड़े राष्ट्रीय पर्व दीपावली पर ज्यादा से ज्यादा बिजनेस हासिल करने के लिए अब इन मीडिया ग्रुपस में खुद को देश का नंबर वन घोषित करने की होड़ मच गई है ताकि विज्ञापनदाता उनके प्लेटफार्म पर आ जाए। इसके लिए वे अपने प्रतिद्धंदी को कमजोर दिखाने के लिए सार्वजनिक तोर पर उसका नाम उजागर करने में भी पीछे नजर नही आ रहे हैं। यानि विज्ञापन हासिल करने के लिए ये राष्ट्रीय मीडिया आपस में नीचा दिखाने के लिए किसी भी मर्यादा को पार कर सकते हैं। कुछ राष्ट्रीय समाचार पत्रों में तो एक दूसरे के खिलाफ शीत युद्ध चल रहा है। ये अपने प्रकाशित विज्ञापन में सच को ऐसे प्रस्तुत करते हैं मानो बाजार में उसे  खुली बोली लगाकर खरीद लिया हो। सोचिए ओर मंथन करिए क्या सच को भी यह साबित करना पड़ रहा है की सचमुच में सच हूं। हमें यह सबकुछ इसलिए लिखना पड़ रहा है ताकि सच को यह गर्व महसूस हो की मीडिया के बाजारू सच को उजागर करना भी असल सच होने का प्रमाण है।

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