रणघोष खास. सुभाष चौधरी
दक्षिण हरियाणा से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपने बेटे चिंरजीव राव की हार के बाद अपने व्यवहार ओर तौर तरीकों से अपनी राजनीति को मदारी का खेल बनाकर रख दिया है। यही स्थिति रही तो आने वाले समय में कप्तान की जुबान से निकले शब्द थोथा चना बाजे घना की कहावत में नृत्य करते हुए नजर आएंगे। यहा बता दे की कप्तान ने पिछले चार पांच दिनों से अपनी पार्टी के खिलाफ ना केवल जबरदस्त मोर्चा खोला हुआ था साथ ही सभी पदों से इस्तीफा देकर पार्टी भी छोड़ दी थी। पार्टी को हर लिहाज से कलंकित करने के बाद उनके इस कदम से तय हो गया था की वे अब कांग्रेस में वापसी नही करेंगे। अचानक फिर सोशल मीडिया पर कांग्रेस में बने रहने की दो लाइन लिखकर उन्होंने ना केवल अपना मजाक बनाया साथ ही अपने समर्थकों को जनता के बीच बोलने लायक भी नही छोड़ा।
कप्तान के लिए ऐसा करना अब रूटीन हो गया है। कांग्रेस की हुडडा सरकार में वे कई बार इस तरह का राजनीतिक ड्रामा कर चुके हैं। अब उन्होंने अपनी हालत गांव के उस व्यक्ति की तरह बना ली है जो हर रोज ग्रामीणों को मुर्ख बनाने के लिए शेर आ गया. शेर आ गया का शोर मचाकर सभी को घरों में दुबका देता था। कई दिनों तक वह ऐसा करता रहा। ग्रामीण उसकी हरकतों से परेशान आ चुके थे। अचानक एक दिन असल में शेर आ गया। वह ग्रामीण चिल्लाता रहा की शेर आ गया किसी से उसकी परवाह नही की। वह चिल्लाता रहा ओर शेर उसका शिकार करके चला गया। भविष्य में कप्तान जब भी जायज, तर्कसंगत ओर तौर तरीकों की बात करेंगे जनता उस पर पहले की तरह भरोसा नही कर पाएगी। इसका अहसास अब मजबूत हो चुका है। सबसे बड़ी चुनौती उनके बेटे चिंरजीव को आने वाली है जिनकी राजनीति पिता की छाया में ही पली ओर बड़ी हुई है। कप्तान ने इस चुनाव में हारने के बाद कांग्रेस की हर तरीके से मिटटी पलीत करने में कोई कसर नही छोड़ी थी। अब वे कांग्रेस में बने रहने का आधार भी बेटे को बता रहे हैं की उन्हें चिंरजीव ने मजबूर किया। यहा सवाल उठता है की आखिर कप्तान राजनीति समाज सेवा करने के लिए कर रहे हैं या कुछ ओर इरादों से आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा भी नही है की वे राजनीति के नौसखिए खिलाड़ी है। रेवाड़ी सीट से खुद छह बार विधायक और कांग्रेस में बड़े ओहदे पर रह चुके हैं। उनके पिता अभय यादव भी तीन बार विधायक बन चुके हैं। बेटा 2019 में विधायक रह चुका है। देश के ताकतवर राजनीतिक परिवारों में एक लालू प्रसाद यादव के समधि है। इतना सबकुछ होने के बावजूद कप्तान जिस तरीके से अपने राजनीति फैसलों को मासूम बच्चों के रूठने मनाने के अंदाज में पलटते रहते हैं। यही कही ना कही उनके समर्थकों को बहुत बड़ी मुश्किलों में डालना है। कप्तान को अब भी यह भ्रम है की समय के साथ जनता भूल जाती है। इसलिए वे पहले भी ऐसा करते आ रहे हैं लेकिन अब राजनीति के तौर तरीके पूरी तरह से बदल चुके हैं। पल पल की गतिविधियों पर विरोधी एक दूसरे पर नजर लगाए हुए हैं। जिस तरह मदारी अपने डमरू से बंदर बंदरिया को अपने डंडे से नजाता है। आधा एक घंटे लोगों का मंनोरजन करता है ओर फिर कटोरा घूमाकर बक्खीश लेकर चला जाता है। कप्तान ने भी मौजूदा हालात में अपनी वही स्थिति कर ली है। इसके लिए कप्तान के चाटुकार और बाजारू समर्थक और दरबारी प्रबंधन जिम्मेदार है जिसने कप्तान को घर के अंदर ओर बाहर चारों ओर हरा ही हरा दिखाया। इसमें अधिकांश प्रोपर्टी डीलर्स, सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार का अवार्ड जीतने वाले कर्मचारी वे तमाम झपटा मार समर्थक जिम्मेदार है जिनके लिए कप्तान एटीएम वाला नेता के अलावा कुछ नही है। वे इस चुनाव में कप्तान को हर लिहाज से कमजोर कर गए लेकिन खुद को चौतरफा मजबूत बना गए। अब इसमें अधिकांश भाजपा सरकार के असरदार नेताओं एवं पदाधिकारियों के साथ नया टारगेट लेकर सक्रिय हो गए हैं।