ऋणम कृत्वा घृतं पीवेत् …यानी कर्ज लो और घी पियो!

 कोरोना राहत के पहले एलान के बाद से जितना कुछ सामने आया है वह मोटे तौर पर उधार बाँटने की ही योजना है। इस वक़्त सबसे ज़्यादा  ज़रूरत इस बात की है कि लोग पहले लिए हुए क़र्ज़ चुकाने की हालत में आए और नए क़र्ज़ लेने की हिम्मत दिखा सकें।


रणघोष खास. आलोक जोशी

लगता है कि सरकार ऐसा ही कुछ कहना चाहती है। और एक बार नहीं बार बार कह रही है। लेकिन इसकी अगली लाइन आज की परिस्थिति में किसी भी तरह फिट नहीं हो सकती। वह है .. यावत् जीवेत् सुखम् जीवेत् यानी जब तक जियो सुख से जियो। और यहाँ तो हाल ऐसा है कि दुख ही दूर होने का नाम नहीं ले रहा।  कोरोना से बुरी तरह मार खाई हुई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कुल मिलाकर 6,28,993 करोड़ रुपए का नया पैकेज लाने का एलान किया है। इसके पहले भी मोदी सरकार करीब 24,35,000 करोड़ रुपए के राहत और स्टिमुलस पैकेज का एलान कर चुकी है। लेकिन इसमें से ज़्यादातर रकम क़र्ज़ के नाम पर ही दी जानी है। अब वह कर्ज वापस आएगा या नहीं, यह एक अलग सवाल है।कोरोना राहत के पहले एलान के बाद से जितना कुछ सामने आया है वह मोटे तौर पर उधार बांटने की ही योजना है। लेकिन इस वक़्त सबसे ज़्यादा ज़रूरत इस बात की है कि लोग पहले लिए हुए क़र्ज़ चुकाने की हालत में आएँ और नए क़र्ज़ लेने की हिम्मत दिखा सकें।

राहत पैकेज

पिछले साल कोरोना संकट शुरू होने के तुरंत बाद यानी 26 मार्च को वित्त मंत्री ने ग़रीबों को सीधे और तात्कालिक मदद पहुँचाने के लिए 1,70,000 करोड़ रुपए के राहत पैकेज का एलान किया था। इस राहत में शहरों और गाँवों में ग़रीब परिवारों को मुफ़्त राशन देने का इंतजाम शामिल था। सरकार ने दावा किया कि देश में 80 करोड़ लोगों को अगले तीन महीनों तक दाल- चावल और गेहूं जैसी चीजें दी जाएँगी ताकि लॉकडाउन की वजह से बेरोज़गार हो गए लोगों के खाने का तो इंतजाम हो जाए।  सफाई कर्मचारियों और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों के लिए एक विशेष बीमा योजना लाई गई और काफी बड़ी संख्या में लोगों के खातों में सीधे रकम डालने का इंतजाम भी हुआ। इसमें गाँव और शहर दोनों के ही लोग शामिल थे। एक सीमा से छोटी इकाइयों में काम करनेवाले और 15 हज़ार से कम तनख्वाह पानेवाले लोगों के लिए सरकार ने पीएफ़ की रकम भी तीन महीने तक अपने पास से भरने का एलान किया था। डेबिट कार्ड से पैसा निकालने पर चार्ज ख़त्म किया गया औऱ बैंकों में मिनिमम बैलेंस की शर्त भी।  सरकार को उम्मीद थी कि दो तीन महीनों में कोरोना का ख़तरा टल जाएगा और सब कुछ पटरी पर आने लगेगा। हम आप भी ऐसा ही सोच रहे थे। सो ज्यादातर इंतजाम भी तीन महीने के नज़रिए से ही किए गए थे। साथ में यह फिक्र भी थी कि इसके तुरंत बाद चीजों को सुधारने के लिए एक धक्का और लगाना ही होगा। सो दो महीने बाद यानी मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपए के एक आर्थिक स्टिमुलस पैकेज का एलान किया।

स्टिमुलस पैकेज

स्टिमुलस यानी ऐसा इंतजाम जिससे अर्थव्यवस्था को उछलने का दम मिल सके। प्रधानमंत्री ने तो आत्मनिर्भर भारत का एलान कर दिया और साथ में बता दिया कि पैकेज का ब्योरा वित्त मंत्रालय से आएगा। अगले कई दिन तक वित्त मंत्री और उनके साथी राज्य मंत्री ने अंग्रेजी और हिंदी में कई किश्तों में इस पैकेज का ब्योरा पेश किया। सारा ब्योरा सामने आने के बाद ज्यादातर विशेषज्ञों की राय यही थी कि दरअसल यह पैकेज कम और पैकेजिंग ज्यादा है। अव्वल तो इसमें सरकार के तमाम पुराने एलान भी जोड़ लिए गए और रिज़र्व बैंक के उठाए कदमों से बाज़ार में आनेवाला करीब 8 लाख करोड़ रुपए का नकदी बढ़ाने का असर भी इसमें शामिल कर लिया गया था। बाल की खाल निकालने वाले जानकारों ने तो यहाँ तक कहा कि जितना कहा जा रहा है यह पैकेज दरअसल उसका दसवाँ हिस्सा भी नहीं है। यह पैकेज सामने आने के साथ ही यह बहस खड़ी हो गई थी कि आखिर तरह तरह के कर्ज बाँटकर सरकार अर्थव्यवस्था को क्या सहारा देने की सोच रही है जबकि ज़रूरत तो बाज़ार में डिमांड पैदा करने की है। क़र्ज़ तो कोई तब लेगा न जब उसे पैसे की ज़रूरत होगी।

जब लॉकडाउन, बेरोज़गारी औऱ अनिश्चितता की वजह से बाज़ार में माँग क़रीब क़रीब ख़त्म हो चुकी हो, ऐसे में व्यापारियों या उद्योगपतियों को क़र्ज़ देने से क्या फ़ायदा होना था। उससे बड़ी बात यह थी कि ऐसे में कर्ज लेने आएगा कौन?

कितनी राहत?

इस बीच एक बात ज़रूर हुई, व्यापारिक कर्जों और घर के कर्ज या कार, स्कूटर या घर के सामान जैसी चीजों या किसी भी वजह से लिए गए पर्सनल लोन की भी ईएमआई भरने से कुछ महीनों की छूट ज़रूर मिल गई। हालांकि इस बीच भी ब्याज चढ़ता रहना था। फिर भी बेहद मुसीबत में फंसे लोगों के लिए यह कुछ राहत का सबब तो बना। नवंबर के महीने में फिर दो लाख पैंसठ हज़ार करोड़ रुपए का एक पैकेज आया। आत्मनिर्भर अभियान का तीसरा चरण। इस बार निर्मला सीतारामन ने रोज़गार पैदा करने पर जोर दिया और कुछ ऐसे सेक्टरों को सहारा देने का इंतजाम किया गया, जिनसे रोजगार बढ़ाने की उम्मीद थी। कोरोना के दौरान रोजगार खो चुके लोगों या नए लोगों को रोजगार पर रखनेवाली ईकाइयों को बढ़ावा देने के लिए आत्म निर्भर भारत रोजगार योजना लाई गई।  छोटे उद्यमियों के लिए इमर्जेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी योजना की मियाद बढ़ाई गई और 10 चैंपियन सेक्टरों को पीएलआई स्कीम में करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए देने का इंतजाम भी किया गया। और भी कई एलान थे औऱ उनपर काम भी हो रहा है।

समस्या ख़त्म होने के बजाय विकराल होती ही दिख रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि कोरोना खत्म होने के बजाय दोगुने जोर से फिर हमलावर हो गया और अब तीसरी लहर की आशंका भी जारी है। इस  वक्त की सबसे बड़ी मुसीबत है बाज़ार में माँग की कमी। और उसकी वजह है लाखों की संख्या में बेरोजगार हुए लोग, बंद पड़े कारोबार और लोगों के मन में छाई हुई अनिश्चितता। सरकार को कुछ ऐसा करना होगा जिससे इसका इलाज हो। और तब शायद उसे इस तरह कर्ज बांटने की जरूरत नहीं रह जाएगी।

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