क्यों खास होते हैं न्यूट्रॉन तारे, कब बन जाते हैं वे पल्सर?

न्यूट्रॉन तारे और उनके धड़कने वाले साथी पल्सर एक ऐसी खिड़की हैं जिनके जरिए ब्रह्माण्ड की चरम घटनाओ तक को देखा समझा जा सकता है. इनकी दिमाग को हिला कर रख देने वाला घनत्व और अविश्सनीय घूर्णन की गति ब्रह्माण्ड और उसकी बहुत सारी प्रक्रियों को समझने में सहायक होते हैं जिन्हें किसी और तरह से समझना बहुत मुश्किल है.

न्यूट्रॉन तारे विशालकाय तारों के अवशेष से बनते हैं. किसी भी बड़े तारे का अंजाम या तो ब्लैक होल के रूप में होता है या फिर न्यूट्रॉन तारों के तौर पर. लेकिन चर्चा हमेशा ही ब्लैक होल की ज्यादा होती है और न्यूट्रॉन तारों की कम. लेकिन न्यूट्रॉन तारों की असामान्य विशेषताएं, जिनमें उनका घन्त्व और घूर्णन गति सबसे अजीब हैं, इन्हें बहुत अहम पिंड बनाती हैं. और इनके बहुत ही असामान्य किस्म के विकिरण इन्हें ब्रह्माण्ड के पिंडों से अलग करते हैं. लेकिन उससे भी खास बात यह है कि इनके जरिए वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड के कई जानकारी हासिल करने में सक्षम हो पाते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Albert Sneppen)

एक तारे की मौत के बाद सिकुड़ते अवशोषों से बने न्यूट्रॉन तारे बहुत असामान्य गुणों के पिंड हो जाते हैं. जब विशाल काय तारे का ईंधन खत्म होता है तो सुपरनोवा की घटना के बाद तारे के क्रोड़ में पदार्थ सिकुड़ तक चरम असामान्यता के घनत्व को हासिल कर लेता है जहां प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन मिलकर न्यूट्रॉन बन जाते हैं. एक शहर के जितने बड़े न्यूट्रॉन तारे में बहुत सारे सूर्य का भार समाया हुआ होता है. इनका गुरुत्व इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश किसी तरह से इनसे बचकर निकल पाता है. (तस्वीर: NASA)

वहीं पल्सर खास विशेषता वाले न्यूट्रॉन तारे होते हैं जिनकी घूर्णन गति बहुत ही ज्यादा होती है कि वे विद्युतचुम्बकीय विकिरण के बीम उत्सर्जित करते हैं. तारे के घूमने के साथ ही यह बीम पूरे अंतरिक्ष में रुक रुक कर विकिरण उत्सर्जित होती है जिसे पृथ्वी पर हर एक निश्चित अवधि बाद अवलोकित किया जा सकता है. ये खगोलीय लाइटहाउस एक सेकेंडमें सैकड़ों बार घूम सकते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

खगोलविद इनका अध्ययन इनसे निकले रेडियो तरंगों के जरिए करते हैं. पल्सर की खोज का प्रभाव खगोलविज्ञान के बहुत से क्षेत्रों पर हुआ है. आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत से लेकर अंतरतारकीय माध्यम और गुरुत्व तरंगों तक को समझने में ये मददगार होते हैं. अंतरिक्ष में कौन सा पिंड कहां और कितनी दूरी पर है यह जानने के लिए ये पल्सर लाइटहाउस की तरह काम आते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

न्यूट्रॉन तारे और ब्लैक होल तारों के अंत बाद उनके अवशेषों के सिकुड़ने के नतीजे से बनते हैं. दोनों में काफी समानताएं भी होती हैं. न्यूट्रॉनतारे बहुत ही घने होते हैं और उनकी सतह ठोस होती है. ब्लैक होल भी बहुत घने होते हैं जहां से कुछ भी, यहां तक कि प्रकाश भी बच कर नहीं निकल सकता है. दोनों के बीच के संबंध का अध्ययन ब्रह्माण्ड और गुरुत्व की प्रकृति को समझने में सहायक होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

अब तक की तमाम विस्तृत शोध के बाद भी न्यूट्रॉन तारों के कई रहस्य हैं जिनसे पर्दा उठना बाकी है. वैज्ञानिक अब भी उनके बने मैग्नेटर्स के निर्माण का कारण और प्रक्रिया समझने का प्रयास कर रहे हैं. मेग्नेटर्स बहुत ही शक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड वाले न्यूट्रॉन तारे ही होते हैं. इसके अलावा पल्सर का बहुत ही उच्च स्तर का विकिरण भी एक बड़ी पहेली जिसे सुलझाना बाकी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

इसमें कोई शक नहीं कि न्यूट्रॉन तारे और उसके पल्सर और मैग्नेटर जैसे अन्य प्रकार कई रहस्य अपने अंदर समेटे होंगे. यही वजह है कि वे अधिकांश तौर पर खगोलविदों के अध्ययन के प्रमुख विषयो में से एक बने हुए हैं. भविष्य के स्क्वायर किलोमीटर ऐरे इन अजीब और रहस्यमी खगोलीय पिंडों के बारे में कई खुलासे कर सकते हैं. उन्नत तकनीक और अवलोकन इस दिशा में लगातार उम्मीदे जगाने का काम कर रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

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