चुनावी बांडः स्टेट बैंक को सुप्रीम झटका

कहा- आज तक सारी जानकारी दीजिए


रणघोष अपडेट. देशभर से

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को कल 12 मार्च तक भारतीय चुनाव आयोग (ईसी) को चुनावी बांड के डोनर्स (दानदाता) का पूरा विवरण जमा करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने ज्यादा समय की मांग करने वाली एसबीआई की याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि सरकार ने जाने-माने वकील हरीश साल्वे को भी अदालत में उतारा था, लेकिन उनके तर्क सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने टिक नहीं सके। अदालत ने कहा एसबीआई को 12 मार्च, 2024 के व्यावसायिक घंटों (बिजनेस ऑवर) के अंत तक तमाम जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया जाता है। केंद्रीय चुनाव आयोग सारी जानकारी संकलित करेगा और अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर पूरा विवरण 15 मार्च, 2024 शाम ​​5 बजे तक प्रकाशित करेगा। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने 6 मार्च तक चुनाव आयोग को चुनावी बांड खरीद के सभी विवरण पेश नहीं करने और प्रक्रिया में देरी करने और अपने पिछले आदेश का पालन नहीं करने पर एसबीआई को इस “नाफरमानी” के लिए फटकार भी लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम एसबीआई को नोटिस देते हैं कि अगर एसबीआई इस आदेश में बताई गई समयसीमा के भीतर निर्देशों का पालन नहीं करता है तो यह अदालत जानबूझकर की गई नाफरमानी के लिए उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था। इसने एसबीआई को 12 अप्रैल, 2019 से सभी चुनावी बांड खरीद का विवरण 6 मार्च तक चुनाव आयोग को पेश करने का निर्देश दिया। इसने इस जानकारी को 13 मार्च तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया था।इस आदेश के खिलाफ एसबीआई ने 4 मार्च को तमाम तकनीकी समस्याओं और प्रोटोकॉल को कारण बताते हुए और अधिक मांगा। हालांकि तमाम वकीलों, कानूनविदों और आईटी की जानकारी रखने वाले लोगों ने एसबीआई की इन दलीलों की धज्जियां उड़ा दीं। सत्य हिन्दी पर प्रकाशित रिपोर्ट्स क्लेक्टिव रिपोर्ट में कहा गया था कि एसबीआई तकनीकी रूप से इतना सक्षम है कि वो 48 घंटे में सारा डेटा चुनाव आयोग को सौंप सकता है। विवरण का खुलासा करने के लिए 30 जून तक की मोहलत देने के अनुरोध पर एसबीआई की खिंचाई करते हुए पीठ ने कहा, “पिछले 26 दिनों में आपने क्या कदम उठाए हैं? आपका आवेदन उस पर चुप है।” जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा- जब आप इस तरह की अर्जी (समय बढ़ाने) के साथ आते हैं तो यह एक गंभीर मामला है। हमारा फैसला बिल्कुल स्पष्ट था। एसबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने पूरी प्रक्रिया की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए कहा कि बैंक को सभी जानकारी एकत्र करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है। क्योंकि दानकर्ता का विवरण नाम न छापने के लिए बैंक की निर्धारित शाखाओं में उसे सीलबंद लिफाफे में रखा गया है। इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा-

आप कहते हैं कि विवरण सीलबंद कवर में रखा गया था और मुंबई शाखा में जमा किया गया था। लेकिन हमारे निर्देश जानकारी को मिलाने के लिए नहीं थे। हम केवल यह चाहते हैं कि एसबीआई दानदाताओं के स्पष्ट विवरण का खुलासा करे। आप फैसले का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं? वकील हरीश साल्वे की दलील पर जस्टिस संजीव खन्ना ने भी कहा सभी विवरण सीलबंद लिफाफे में हैं, और आपको बस सीलबंद लिफाफा खोलना है और विवरण देना है। बस इतना ही तो है। अदालत ने एसबीआई के चेयरमैन और एमडी को चेतावनी दी है कि अगर समय सीमा के भीतर उसके आदेश का पालन नहीं किया गया तो उन्हें अदालत की अवमानना ​​कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा।

विपक्ष का आरोप
इस महीने की शुरुआत में एसबीआई द्वारा समय सीमा बढ़ाने की मांग के बाद, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि भाजपा सरकार बैंक को अपने “संदिग्ध लेनदेन” के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रही है। खड़गे ने कहा था- “मोदी सरकार चुनावी बांड के माध्यम से अपने संदिग्ध लेनदेन को छिपाने के लिए हमारे देश के सबसे बड़े बैंक को ढाल के रूप में उपयोग कर रही है… भाजपा चाहती है कि यह लोकसभा चुनाव के बाद किया जाए। इस लोकसभा का कार्यकाल 16 जून को समाप्त होगा और एसबीआई 30 जून तक डेटा साझा करना चाहता है।”