छोटे– मंझले व्यापारियों के दर्द को बयां करती यह रिपोर्ट

भयावह तस्वीरः कोविड में लिया लोन नहीं चुका पाए कारोबारी


रणघोष अपडेट. देशभर से 

भारत के बहुत छोटे (माइक्रो), छोटे (स्माल) और मध्यम (मीडियम) दर्जे के कारोबारी किन हालात में अपना बिजनेस चला रहे हैं, उसका अंदाजा इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इंडियन एक्सप्रेस ने आरटीआई के जरिए प्राप्त रिपोर्ट में कहा है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के उद्योगों को 2020 में कोविड और लॉकडाउन के दौरान जो लोन दिया गया था, उनमें 6 में से एक लोन एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) बन गया। आसान शब्दों में इसे कहना हो तो सरकार ने जो पैसा इन छोटे उद्योगों को जिन्दा रखने के लिए लोन के रूप में दिया था, वो डूब गया। भारत में आर्थिक तरक्की के चाहे जो दावे किए जा रहे हों, लघु और मध्यम उद्योग को संकट में निकाले बिना आर्थिक तरक्की की रफ्तार तेज नहीं हो सकती।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक लोन देने की योजना मई 2020 में कोविड -19 राहत पैकेज के हिस्से के रूप में शुरू की गई थी। इसे इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजी योजना) नाम दिया गया था। आरटीआई से मिली जानकारी में इंडियन एक्सप्रेस को पता चला कि महज 27 महीनों में ऐसे लोन डूब गए। खराब हो गया। सबसे ज्यादा ऐसे लोन डूबे जिसमें 20 लाख तक का कर्ज लिया गया था।रिपोर्ट के मुताबिक इस लोन का काम देखने वाली भारत सरकार की कंपनी नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (एनसीजीटीसी) ने कहा कि 98 लाख 86 हजार लोगों या खातों में से 16.22 लाख लोगों या खातों को दिया गया लोन डूब गया। यानी 16.4 फीसदी लोन डूब गया या एनपीए में बदल गया।इंडियन एक्सप्रेस को आरटीआई के जवाब में सरकार ने बताया कि इस साल 25 अगस्त तक कुल एनपीए या खराब लोन 11,893.06 करोड़ रुपये था। बैंकों के जरिए सरकार ने इस साल 25 अगस्त तक लोन के रूप में 2,81,375.99 करोड़ रुपये दिए हैं। दो साल की मोहलत थीः केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में लॉकडाउन की घोषणा की थी। उसके महीने बाद मई 2020 में एमएसएमई क्षेत्र के लिए ईसीएलजी योजना लाई गई थी। उस समय कहा गया था कि इस योजना के तहत लोन लेने वाले कारोबारियों को लोन चुकाने के लिए दो साल की मोहलत मिलेगी। बैंकों के लिए ब्याज दर 9.25 फीसदी और नॉन-बैंकिंग वित्तीय निगमों (एनबीएफसी) के लिए 14 फीसदी तक तय की गई थी। एमएसएमई कारोबारियों को उनके बकाया लोन के मुकाबले अधिकतम 20 फीसदी तक अतिरिक्त लोन दिया गया। इसमें अधिकतम लोन 50 करोड़ रुपये था। लेकिन इनमें से बहुत सारे दो साल की मोहलत वाला टाइम निकल जाने के बाद भी लोन का पैसा वापस नहीं कर सके।

वित्तीय तनाव है वजह

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस प्रक्रिया में शामिल एक बैंकर ने कहा कि लोन का भुगतान न करने के कारण अनिवार्य तीन महीने की अवधि से पहले ही कुछ खाते खराब हो गए हैं, यह दर्शाता है कि कंपनी या व्यक्ति वित्तीय तनाव के कारण लोन चुकाने में सक्षम नहीं था। एक दूसरे बैंकर ने बताया कि लोन का ज्यादातर पैसा 20 लाख रुपये तक वाले लोन में डूबा है या एनपीए बन गया। यानी जिन लोगों ने छोटे-छोटे कारोबार करने के लिए 20 लाख रुपये तक लोन लिया था, वे उसे चुका नहीं सके। इंडियन एक्सप्रेस ने इस संबंध में एनसीजीटीसी, केंद्रीय वित्त मंत्रालय और वित्तीय सेवा सचिव संजय मल्होत्रा ​​को ईमेल भेजकर सरकार का पक्ष जानना चाहा था, लेकिन उधर से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।

एसबीआई की रिपोर्ट

दूसरी तरफ भारतीय स्टेट बैंक की जनवरी 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि एमएसएमई को बचाए रखने में ईसीएलजीएस स्कीम की भूमिका महत्वपूर्ण थी। उस रिपोर्ट में एसबीआई ने दावा किया था कि इस स्कीम ने 1.5 करोड़ नौकरियों को बचाया और 1.8 लाख करोड़ रुपये के बकाया एमएसएमई लोन (14 प्रतिशत) को खराब होने से रोका।

क्या है माइक्रो, क्या है स्माल

ईसीएलजी स्कीम में मिलने वाले लोन पर सरकारी गारंटी होती है और लोन खातों के खराब होने की स्थिति में कुल लोन राशि का 75 फीसदी सरकार तुरंत बैंकों को भुगतान कर देती है। सरकार और बैंक माइक्रो यूनिट्स को 1 करोड़ रुपये तक के निवेश और 5 करोड़ रुपये से कम के कारोबार वाली इकाइयों के रूप में वर्गीकृत करते हैं। स्माल यूनिट्स को 10 करोड़ रुपये की निवेश सीमा और 50 करोड़ से कम के कारोबार के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। मीडियम यूनिट में 20 करोड़ रुपये तक का निवेश और 100 करोड़ रुपये से कम का कारोबार को रखा गया है।

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