रणघोष अपडेट. नई दिल्ली
सरकार ने लोकसभा में बताया कि देश की विभिन्न जिला और अधीनस्थ अदालतों में 20 साल से अधिक समय से करीब 6.72 लाख मामले लंबित हैं. वहीं, उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या 2,94,547 है.कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा, ‘27 जनवरी, 2023 को एकीकृत मामला प्रबंधन सूचना प्रणाली (आईसीएमआईएस) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, उच्चतम न्यायालय में 20 वर्ष से अधिक समय से लंबित मामलों की संख्या 208 है.’उन्होंने कहा, ‘एक फरवरी, 2023 को राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार (25) उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या 2,94,547 और जिला तथा अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 6,71,543 है जो 20 से अधिक वर्षों से लंबित हैं.’रिजिजू ने कहा कि अदालती मामलों के इतने लंबे समय से लंबित रहने के विषय पर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं हैं.कानून मंत्री ने कहा, ‘अदालती मामलों के लंबित रहने की समस्या के अनेक पहलू हैं. देश की आबादी में वृद्धि और जनता के बीच उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता के कारण हर साल तेजी से बड़ी संख्या में नए मामले दायर किए जा रहे हैं.’
अदालतों में चार लाख से अधिक ऐसे मामले जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित
उन्होंने बताया कि देश भर के विभिन्न अदालतों में चार लाख से अधिक ऐसे मामले है, जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं. उनके मुताबिक ऐसे लंबित मामलों की कुल संख्या 4,01,099 है.रिजिजू ने बताया, ‘27 जनवरी 2023 तक एकीकृत वाद प्रबंधन सूचना प्रणाली (आईसीएमआईएस) से प्राप्त डेटा के अनुसार भारत के उच्चतम न्यायालय में 25 वर्षों से अधिक समय तक लंबित मुकाबलों की संख्या 81 है.’उन्होंने कहा कि 30 जनवरी 2023 तक राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध डेटा के अनुसार उच्च न्यायालय और जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में 25 वर्षों से अधिक समय तक लंबित वादों की संख्या क्रमशः 1,24,810 और 2,76,208 है.यह पूछे जाने पर कि क्या न्याय के लिए लंबे समय तक चल रहे मुकदमों पर होने वाले खर्च का कोई अध्ययन कराया गया है, जिससे पता चल सके कि न्याय पाने में आम आदमी पर कितना आर्थिक दवाब पड़ता है, केंद्रीय मंत्री ने बताया कि ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया है.उन्होंने बताया कि लंबित मामलों की समस्या एक बहुआयामी समस्या है जो देश की जनसंख्या में वृद्धि और जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ ही साल दर साल नए मामलों की संख्या भी बढ़ रही है.उन्होंने कहा कि न्यायालयों में बड़ी संख्या में लंबित मामलों के कई कारण है और इनमें अन्य बातों के साथ पर्याप्त संख्या में न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारियों की उपलब्धता, सहायक न्यायालय कर्मचारीवृंद और भौतिक अवसंरचना, बार-बार स्थगन और मॉनिटर करने की पर्याप्त व्यवस्था में कमी, सुनवाई के लिए ट्रैक और बहु मामले, साक्ष्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति, साक्षियों और वादियों तथा नियमों एवं प्रक्रियाओं के उचित आवेदन सम्मिलित है.रिजिजू ने कहा कि इसके अतिरिक्त वर्ष 2020 के आसपास आई कोविड-19 महामारी ने भी पिछले तीन वर्षों में लंबित मामलों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.उन्होंने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि आपराधिक न्याय प्रणाली विभिन्न अभिकरणों यानी पुलिस, फॉरेंसिक प्रयोगशाला, हस्तलेख विशेषज्ञ और विधिक चिकित्सा विशेषज्ञ की सहायता से कार्य करती है.उन्होंने कहा कि संबद्ध अभिकरणों द्वारा आपसी सहायता प्रदान करने में देरी से भी मामलों के निपटान में विलंब होता है.