जिले में साहित्य- लोकसंस्कृति से जुड़ी शानदार उपलब्धि

3c09eb9a-5531-425d-a527-e8790d2c02d8जिले के गांव नाहड़ में जन्मे, रेवाड़ी की सेक्टर-एक में रह रहे तथा खोरी के सरकारी स्कूल में रसायनशास्त्र प्राध्यापक के तौर पर सेवारत साहित्यकार सत्यवीर नाहड़िया हरियाणवी रचनाधर्मिता व लोकसंस्कृति की साधना हेतु प्रदेश सरकार ने जनकवि मेहर सिंह सम्मान के लिए चयनित किया है। हरियाणा साहित्य अकादमी के गत तीन वर्षों के लंबित पुरस्कारों की घोषणा आज चंडीगढ़ में की गई। अकादमी के निदेशक डॉ. चंद्रत्रिखा ने बताया कि श्री नाहड़िया को हरियाणवी लोक साधना के लिए वर्ष 2018 हेतु संबंधित पुरस्कार दिया जाएगा, जिसमें दो लाख रुपए की सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र एवं श्रीफल प्रदान किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि चार हरियाणवी फिल्मों में गीत एवं संवाद लिख चुके श्री नाहड़िया का हरियाणवी साहित्य सृजन में विशिष्ट मौलिक योगदान रहा है। रेजांगला युद्ध की शौर्यगाथा पर उनकी संगीत एल्बम ‘दिवाली बासठ की’ बेहद चर्चित रही है। करीब डेढ़ दर्जन पुस्तकों के लेखक होने के अलावा हरियाणा इनसाइक्लोपीडिया में उनका उत्कृष्ट लेखकीय योगदान रहा है।हरियाणवी बोली में एक ओर जहां वे राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में गत एक दशक से नियमित रूप से स्तंभ लेखन कर रहे हैं, वहीं दोहा,कुंडलिया, रागनी,आल्हा, मुक्तक आदि साहित्यिक विधाओं में उनकी हरियाणवी पुस्तकें लोकराग, एक बखत था,ग्यान-बिग्यान की कुंडलियांँ,जरा याद करो कुर्बानी,बख़त-बख़त की बात, गाऊं गोविंद गीत, नाहड़िया की कुंडलियांँ, चालती चाक्की आदि बेहद प्रसिद्ध रही हैं। दो दशकों से राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में उनके शोध आलेख, फीचर,लेख तथा साहित्यिक रचनाएं प्रमुखता से प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से उनकी काव्य रचनाओं के अलावा फीचर प्रसारित हुए हैं।सांस्कृतिक इलेक्ट्रॉनिक चैनल एंडी हरियाणा तथा ए-वन तहलका में उनकी हरियाणवी रचनाएं विशेष स्थान पाती रही हैं। पिछले दिनों उनकी पुस्तक बख़त-बख़त की बात को हरियाणा साहित्य अकादमी ने श्रेष्ठ कृति सम्मान हेतु चयनित किया था। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित काव्यपाठ एवं लेखन प्रतियोगिता में राज्य भर में प्रथम स्थान श्री नाहड़िया ने पहले बोड़ियाकमालपुर तथा अब खोरी में सेवारत रहते हुए संबंधित स्कूलों को राज्य स्तर पर विशेष पहचान दिलवाने में टीम वर्क के साथ उन्होंने केंद्रीय भूमिका निभाई है। श्री नाहड़िया ने उक्त सम्मान को मांँ-बोली का सम्मान बताते हुए निर्णायक मंडल तथा अकादमी का आभार ज्ञापित किया। उनका मानना है कि विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते वरिष्ठ साहित्यकारों से निरंतर कुछ नया सीखने की ललक तथा रुचि रखते रहे हैं तथा मांँ-बोली हरियाणवी को भाषा बनाने के पक्षधर रहे हैं। गत दो दशकों से राष्ट्रीय पर्वों पर जिला स्तरीय कार्यक्रमों का संयोजन इन संचालन करने वाले श्री सत्यवीर अनेक साहित्यिक सांस्कृतिक व सामाजिक संगठनों के सक्रिय सदस्य रहे हैं, जिनमें बाबू बालमुकुंद गुप्त पत्रकारिता एवं साहित्य संरक्षण परिषद् के संस्थापक महासचिव की तौर पर गुप्त जी के भूले-बिसरे व्यक्तित्व एवं कृतित्व को चिरस्थाई प्रणब बनाने में उनका योगदान रहा है।

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