झारखंड में नए सरकार के गठन के बाद अब सत्तारुढ़ दल के लिए फ्लोर टेस्ट पास करना एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए झारखंड विधानसभा का दो दिवसी स्पेशल सत्र 5 फरवरी को बुलाया गया है. वहीं फ्लोर टेस्ट में शामिल होने के लिए आज सत्तारुढ़ दल के विधायक हैदराबाद से रांची पहुंचेंगे. वहीं पार्टी से नाराज चल रहे लोबिन हेंब्रम ने शिबू सोरेन से मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने फ्लोर टेस्ट में पार्टी को समर्थन देने की बात कही है. लोबिन हेंब्रम ने बसंत सोरेन से भी मुलाकात की थी.
इससे पहले वह चंपई सोरेन को सीएम बनाए जाने को लेकर नाराज चल रहे थे और उन्होंने पार्टी से रिश्ते-नाते खत्म करने की बात कही थी. उन्होंने चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले का विरोध भी किया था. बता दें कि कल होने वाले फ्लोर टेस्ट में हेमंत सोरेन भी शामिल होंगे.
5 फरवरी को झारखंड विधानसभा में होगा फ्लोर टेस्ट
उन्हें रांची के सर्किट हाउस में रोका जाएगा, जिसके बाद सोमवार को बस से सीधे विधानसभा लाया जाएगा. बता दें कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद चंपई सोरेन ने झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी. उनके साथ ही कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम और राजद विधायत सत्यानंद भोक्ता ने कैबिनेट मंत्री की शपथ ली थी. विधायकों में टूट की आशंका के चलते जेएमएम ने विधायकों को सुरक्षित जगह भेजने की योजना बनाई. गठबंधन के 35 विधायकों तो तेलंगाना भेजा गया. क्योंकि वहां कांग्रेस की सरकार है. इनमें चंपई सोरेन, आलमगीर आलम और आरजेडी विधायक सत्यानंद भोक्ता नहीं गए.
हैदराबाद से आज लौटेंगे गठबंधन दल के विधायक
बता दें कि झारखंड विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या 81 है, जिसमें से एक सीट खाली है. यानी कि 80 में से 48 विधायक इंडिया ब्लॉक के हैं. जेएमएण से 29, कांग्रेस से 17 विधायक हैं. वहीं राजद-सीपीएम के पास 1-1 सीटें हैं. जबकि चंपई सोरेन ने राज्यपाल को विधायकों के समर्थन का जो पत्र सौंपा है, उसपर 43 विधायकों के ही हस्ताक्षर हैं. वहीं बीजेपी के 26 विधायकों के साथ विधानसभा में दूसरी बड़ी पार्टी है. आजसू के तीन, एनसीपी (अजित पवार गुट) के एक और दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी भाजपा के साथ है.
अब तक 11 बार झारखंड में हो चुके हैं फ्लोर टेस्ट
झारखंड में फ्लोर टेस्ट की बात करें तो यहां अब तक विधानसभा में 11 बार तत्कालीन सरकारों द्वारा बहुमत साबित करने के लिए विश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है. जिनमें से 8 बार सरकारों ने अपना बहुमत साबित किया. दो बार प्रस्ताव आने के बाद वोटिंग से पहले ही तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने अपना इस्तीफा दे दिया था. एक बार वोटिंग की अनुमति ही नहीं दी गई थी.