डंके की चोट पर : विकल्प के मामले में अब तो झूठ को भी खुद पर शर्म आने लगी है..

9 सितंबर 2022 के विडियों में मिश्रा का धमकी भरे लहजे में यह कहना जो बच्चे छोड़कर जा रहे हैं दो साल बाद पता चलेगा। मिश्रा से कोई पूछे आज तुम्हारी स्थिति क्या है।


Video Credit To :-News AV

रणघोष खास. प्रदीप नारायण


आईआईटी- नीट की परीक्षा को क्लीयर कराने का सरकारी टेंडर लेकर शिक्षा के बाजार में उछल कूद कर रही विकल्प संस्था का तौर तरीका आ बैल मुझे मार वाला बन गया है। इस संस्था को चलाने वाले वहीं गलतियां कर रहे हैं जिसमें झूठ को भी अपनी इस्तेमाली पर अब शर्म आने लगी है। बेहद ही चालाकी से नवीन मिश्रा को संस्था का चेहरा बनाकर असली किरदारों को छिपाया जा रहा है। असल सच यह है कि सुपर-100 नाम से जन्मा यह प्रोजेक्ट  सिस्टम में बैठे छोटे बड़े कुछ अधिकारियों के लिए सरकारी दुधारू गाय बन चुका है । अगर यह दावा गलत है तो अभिभावक, सामाजिक संगठन और जिम्मेदार लोग बच्चों का निस्वार्थ बेहतर भविष्य बनाने का दावा करने वाली इस संस्था को उखाड़ फैंकने के लिए मजबूर नहीं होते। सरकार को भी इस सवाल का जवाब सार्वजनिक करना चाहिए कि जब से यह संस्था सरकारी सिस्टम में आई है क्या उसी समय से ही सरकारी स्कूलों के बच्चों का बेहतर भविष्य बनना शुरू हुआ है। जो नवीन मिश्रा 10 साल पहले हरियाणा के रेवाड़ी में आकर यह दावा करता है कि वह 40 लाख का पैकेज छोड़कर बच्चों का बेहतर भविष्य बनाने आया है। वहीं मिश्रा मजदूरों की मजदूरी, भवन मालिकों से किराए को लेकर इतना झग़ड़ता क्यों है। अभिभावकों से उनके बच्चों से खुलकर मिलाने में उसे डर क्यों लगता है। 9 सितंबर 2022  को गांव देवलावास में चल रहे इस प्रोजेक्ट के तहत हास्टल में रह रहे बच्चों से मिलने आए अभिभावकों से नवीन मिश्रा ने जिस तरह का बर्ताव किया वह उसका असली चरित्र था जिसे शिक्षा विभाग के लोकल अधिकारियों ने अपनी सस्ती बोली लगाकर दबा दिया। लेकिन उस समय वायरल हुई विडियो आज भी गुगल पर जिंदा रहकर सही समय का इंतजार कर रहा है।

 लानत है ऐसी शिक्षा पर जो माता पिता से बच्चों को मिलने से रोके

हमें लानत है ऐसी   शिक्षा पर जो माता-पिता से बच्चों को मिलने के लिए रोके। शर्म करिए ऐसे शिक्षा अधिकारी व पढ़ाने वाले शिक्षकों पर जो बच्चों के बेहतर भविष्य बनाने के टेंडर में खुद की बोली लगाते रहते हैं। तमाशीन शिक्षा अधिकारियों की स्थिति उसी तरह बन चुकी है जिस तरह महाभारत में द्रोपदी चीरहरण के समय सभी गर्दन झुकाए बेहतर इंसान बनने का गर्व खो चुके थे।

 जिस मकसद से सुपर-100 शुरू हुआ वह तो अलग ही रजल्ट दे रहा है

सुपर-100 में प्रदेशभर से 100 ऐसे बच्चों को अलग से पढ़ाई कराई जाती है जो बेहद प्रतिभाशाली है और लिखित परीक्षा में टॉप पोजीशन लेकर आए हैं। इन बच्चों का सारा खर्चा राज्य सरकार वहन करती है व पढ़ाने का जिम्मा विकल्प नाम की संस्था ने लिया हुआ है।  जिनके संचालक नवीन मिश्रा खुद को शिक्षा के प्रति समर्पित, उच्च कोटि के विद्धान के तौर पर प्रस्तुत करते आ रहे हैं। जिसे साबित करने का ठेका शिक्षा विभाग के अधिकारी समय समय पर मीडिया के सामने करते रहे हैं। सितंबर 2022 के इस विडियो को दुबारा देखने की जरूरत है। जिसमें इन बच्चों के माता-पिता का दर्द लावा की तरह निकलता नजर आ रहा था जबकि नवीन मिश्रा पूरे दंभ के साथ बच्चों और उनके माता-पिता को चेतावनी देते नजर आए कि मेरे बिना उनके बच्चों का भविष्य खत्म हो जाएगा । इससे साफ जाहिर हो रहा था कि यह शिक्षा संस्थान नहीं कोई गोदाम है जहां प्रोडेक्ट तैयार हो रहे हैं बेहतर इंसान नहीं। वह शिक्षा हरगिज नहीं हो सकती जिसमें माता-पिता और गुरु का सम्मान सड़क पर बिखरता नजर आए। यह सीधे तौर पर बाजारू शिक्षा हैं जहां आईआईटीएन, डॉक्टर्स जैसे सोशल स्टेटस प्रोफाइल में बच्चें को तब्दील करके उसे प्रोडक्ट बनाकर अलग अलग तरीकों से शिक्षा के बाजार में बेचा जाता है। इसी तरह के माहौल की वजह से  हर साल सैकड़ों बच्चे डिप्रेशन में आकर आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। नवीन मिश्रा जैसे शिक्षक क्यों भूल जाते हैं कि पढ़ाने के नाम पर उनका  बच्चों से रिश्ता दो तीन साल का रहा होगा लेकिन माता-पिता का अपने बच्चों के जन्म से लेकर मृत्यु और उसके बाद भी पीढ़ी दर पीढ़ी रहता है। ऐसे में मिश्रा का विडियो में धमकी भरे लहजे में यह कहना जो बच्चे छोड़कर जा रहे हैं दो साल बाद पता चलेगा। आज मिश्रा बताए कि वह अब किस स्थिति में है।  क्या पीएम नरेंद्र मोदी को अपने बचपन में आभास हो गया था कि वे देश के पीएम बनेंगे। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्म को बचपन में सपना आ गया था कि वह देश की राष्ट्रपति बनेगी। ऐसे लाखों उदाहरण हमारे सामने दौड़ रहे हैं जिनके बारे में सोचा क्या था और वे क्या बनकर परिवार- समाज एवं राष्ट्र के सामने बेहतर उदाहरण बन गए। इस पूरे मसले को किसी तरह छिपाकर- दबाकर चल रहे  शिक्षा विभाग के अधिकारी, कर्मचारी बेशक अपने पदों पर बैठकर इतराए लेकिन वे  बेहतर इंसान होने की शिक्षा देने में फेल हो गए हैं। यह विडियो अपने आप में आज भी गवाह बना हुआ है।

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