दिमाग समय का अनुमान कैसे लगाता है, क्‍या हमारा अनुभव समय को घटा-बढ़ा सकता है?

समय की प्रकृति पर अरस्‍तू से लेकर आइंस्‍टीन तक ने शोधकार्य किए हैं. आइंस्‍टीन ने समय को देखने और समझने के लिए सापेक्ष्‍ज्ञता का सिद्धांत दिया. इस सिद्धांत का मानना है कि समय फैल और सिकुड़ सकता है. इसे समय का फैलाव या टाइम डाइलेशन कहा जाता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, जिस तरह ब्रह्मांड समय को मोड़ता है, उसी तरह हमारा तंत्रिका सर्किट समय के हमारे अनुभव को खींच और घटा सकता है. आइंस्टीन ने इसको लेकर कहा था कि अपना हाथ एक मिनट के लिए गर्म स्टोव पर रखें तो एक घंटे जैसा लगता है. वहीं, एक सुंदर लड़की के साथ एक घंटा बैठने के बाद भी एक मिनट जैसा अनुभव होता है.

नेचर न्यूरोसाइंस जर्नल में प्रकाशित चैंपालीमॉड रिसर्च की लर्निंग लैब के नए शोध में वैज्ञानिकों ने चूहों में तंत्रिका गतिविधि के पैटर्न को कृत्रिम रूप से धीमा या तेज कर दिया. साथ ही समय अवधि को लेकर उनकी समझ को विकृत कर दिया. इससे पता चला कि हमारे दिमाग की आंतरिक घड़ी हमारे व्‍यवहार का कैसे मार्गदर्शन करती है. हमारे 24 घंटे की जैविक लय को नियंत्रित और नींद-जागने के चक्र से लेकर चयापचय तक हमारे रोजमर्रा के जीवन को आकार देने वाली सर्केडियन घड़ियों के उलट इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि हमारा शरीर सेकंड से मिनट के पैमाने पर समय को कैसे मापता है?

क्‍या अलग हो सकता है समय का अनुभव?
नया अध्ययन सटीक रूप से सेकंड से मिनट की समयसीमा पर केंद्रित है, जिस पर हमारा ज्‍यादातर व्यवहार सामने आता है. जैसे कि जब आप बस स्टॉप पर इंतजार कर रहे होते हैं या टेनिस बॉल सर्व कर रहे होते हैं तो समय को लेकर हमारा अनुभव बिलकुल अलग होता है. कंप्यूटर की सेंट्रेलाइज्‍ड क्‍लॉक की टिक-टिक के उलट हमारा दिमाग समय की एक विकेंद्रीकृत और लचीली भावना को बनाए रखता है, जिसे मस्तिष्क में फैले न्यूरोनल नेटवर्क की गतिशीलता आकार देती है. इस ‘पॉप्‍यूलेशन क्‍लॉक’ परिकल्पना में हमारा मस्तिष्क व्यवहार के दौरान न्यूरॉन्स के समूहों में विकसित होने वाली गतिविधि के लगातार पैटर्न पर भरोसा करके समय का अनुमान रखता है.

अध्‍ययन के वरिष्‍ठ लेखक का क्‍या है कहना?
अध्ययन के वरिष्ठ लेखक जो पैटन समय को लेकर दिमाग के अनुभव की तुलना तालाब में पत्थर गिराने से करते हैं. हर बार जब कोई पत्थर गिराया जाता है तो लहरें पैदा होती हैं, जो सतह पर बाहर की ओर फैलती हैं. इन तरंगों के पैटर्न और स्थिति की जांच करके कोई यह अनुमान लगा सकता है कि पत्थर पानी में कब तथा कहां गिरा था. जिस तरह तरंगों के चलने की गति अलग हो सकती है, उसी तरह न्‍यूरल पॉप्‍यूलेशंस में इन गतिविधि पैटर्न की प्रगति की गति भी बदल सकती है. पैटन के मुताबिक, उनकी प्रयोगशाला इन तंत्रिका ‘तरंगों’ के विकसित होने की गति और समय-निर्भर निर्णयों के बीच एक मजबूत संबंध प्रदर्शित करने वाली पहली प्रयोगशालाओं में से एक थी.

क्‍यों चाहिए था गतिशीलता में हेरफेर का तरीका
शोधकर्ताओं ने चूहों को समय के अलग-अलग अंतरालों के बीच अंतर करने के लिए प्रशिक्षित किया. उन्होंने पाया कि मस्तिष्क के गहरे क्षेत्र स्ट्रिएटम में गतिविधि पूर्व अनुमानित पैटर्न का पालन करती है, जो अलग-अलग गति से बदलती है. जब जानवर किसी दिए गए समय अंतराल को लंबा बताते हैं, तो गतिविधि तेजी से विकसित होती है और जब वे इसे छोटा बताते हैं तो गतिविधि ज्‍यादा धीरे विकसित होती है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, वे परीक्षण करना चाहते थे कि स्ट्राइटल पॉप्‍यूलेशन की गतिशीलता की गति में परिवर्तनशीलता केवल समय के व्यवहार से संबंधित है या सीधे नियंत्रित करती है? ऐसा करने के लिए प्रयोगात्मक रूप से गतिशीलता में हेरफेर करने का तरीका चाहिए था, क्योंकि जानवरों ने समय संबंधी निर्णयों की सूचना दी थी.

अध्‍ययन में तापमान की क्‍या रही है भूमिका?
अध्ययन के लेखकों में एक टियागो मोंटेइरो कहते हैं कि पुराने तरीकों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए. टीम ने कारण स्थापित करने के लिए न्यूरोसाइंटिस्ट के टूलबॉक्स की एक पुरानी तकनीक ‘तापमान’ का रुख किया. पिछले अध्ययनों में तापमान का उपयोग पक्षियों के गीत जैसे व्यवहार की अस्थायी गतिशीलता में हेरफेर करने के लिए किया गया था. मस्तिष्क के एक विशिष्ट क्षेत्र को ठंडा करने से गाना धीमा हो जाता है, जबकि गर्म होने से इसकी संरचना में कोई बदलाव किए बिना इसकी गति तेज हो जाती है. यह सुरों को बिना छेड़े संगीत की गति को बदलने जैसा है. शोधकर्ताओं ने सोचा कि तापमान आदर्श हो सकता है, क्योंकि यह संभावित रूप से पैटर्न को बाधित किए बिना तंत्रिका गतिशीलता की गति को बदलने में मदद करेगा.

क्‍यों बनाया गया थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस?
चूहों में तापमान का परीक्षण करने के लिए शोधकर्ताओं ने तंत्रिका गतिविधि को रिकॉर्ड करने के साथ ही स्ट्रिएटम को गर्म या ठंडा करने के लिए कस्टम थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस बनाया. शोध के दौरान चूहों को बेहोश कर दिया गया था. शोधकर्ताओं ने ऑप्टोजेनेटिक्स का इस्‍तेमाल किया. ये ऐसी तकनीक है, जो खास कोशिकाओं को प्रकाश की मदद से उत्तेजित करती है. द वीक की रिपोर्ट के मुताबिक, शोध की प्रमुख सह-लेखिका मार्गरिडा पेक्सिरा कहती हैं कि दिमाग के खास हिस्‍से को बहुत अधिक ठंडा नहीं किया, क्योंकि इससे गतिविधि बंद हो सकती थी. ना ही बहुत अधिक गर्म किया, जिससे बड़ा नुकसान हो सकता था. उन्होंने पाया कि ठंडक ने गतिविधि के पैटर्न को फैला दिया, जबकि वार्मिंग ने पैटर्न को परेशान किए बिना संकुचित कर दिया.

क्‍या बढ़ाई जा सकती है तंत्रिका गतिविधि?
अध्ययन के एक प्रमुख लेखक फिलिप रोड्रिग्स के मुताबिक, तापमान ने हमें एक नया मोड़ दिया, जिसके साथ तंत्रिका गतिविधि को समय पर बढ़ाया या कम किया जा सकता था. हमने व्यवहार के संदर्भ में इस हेरफेर को लागू किया. हमने जानवरों को यह बताने के लिए प्रशिक्षित किया कि दो स्वरों के बीच का अंतराल 1.5 सेकंड से कम या अधिक है. जब हमने स्ट्रिएटम को ठंडा किया तो उनके यह कहने की ज्‍यादा संभावना थी कि अंतराल छोटा था. जब हमने इसे गर्म किया तो उनके यह कहने की ज्‍यादा संभावना थी कि यह लंबा था. स्ट्रिएटम को गर्म करने से स्ट्राइटल पॉप्‍यूलेशन की गतिशीलता में तेजी आती है, जो घड़ी की सुइयों की गति को तेज करने जैसा है, जिससे चूहों को निश्चित समय अंतराल का अनुमान लगाने में मदद मिलती है, जो असल में उससे अधिक लंबा है.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *