पढ़िए सरकारी स्कूल में संस्कृत प्रवक्ता राकेश कुमार की कहानी

 एक समय ऐसा भी आया जब मैने सुसाइड के लिए सल्फास खा लिया, उल्टियां होने से बच गया..


 रणघोष खास.राकेश कुमार की कलम से


मेरा नाम राकेश कुमार है। मेरे पिताजी का नाम सत्यनारायण माता जी का नाम सोना देवी है। वर्तमान में गांव गुगोढ़ सरकारी स्कूल में संस्कृत प्रवक्ता के साथ साथ हुडा रेजीडेंशियल वेलफेयर सोसायटी कोसली के प्रधान पद की जिम्मेदारी निभा रहा हूं।  जब मैं मात्र 2 वर्ष का था तब मेरी माता स्वर्ग सिधार गई। मेरे पिताजी भिवानी की एक कपड़े की मील में कार्य करते थे उन्होंने मुझे मेरे ननिहाल छोड़ दिया था।मेरे नाना जी का संयुक्त परिवार था, परिवार के सभी सदस्य खेतीबाड़ी में व्यस्त रहते थे और मैं बच्चों में दिनभर खेलता रहता और रात के समय खाना खाने पहुंच जाता था। मैं चोरी करना भी सीख गया था। मेरे पिताजी भिवानी में रहते थे उन्होंने मेरी माता जी के स्वर्गवास होने पर नौकरी भी छोड़ दी थी, वे बीमार रहने लगे थे और पूरे दिन अपने कमरे पर रहते थे। साल में एक बार मुझसे मिलने मेरे ननिहाल आते थे। इस बार जब वे मेरे ननिहाल आए तब मेरी नानी जी ने उन्हें कहा कि मुझे अपने साथ ले जाए और अपने पास रखें। मेरे पिताजी मुझे अपने साथ भिवानी ले गए और मेरा दाखिला भिवानी के अनाथ आश्रम में करवा दिया। गांव में मेरे दो चाचा जी थे वे दोनों फौज में थे। मेरी दोनों चाची गांव के घर में रहती थी, उनके बच्चे छोटे थे। उनमें से एक चाची मुझे भिवानी अनाथ आश्रम से गांव में ले आई और गांव में मेरा दाखिला चौथी कक्षा में करवा दिया। मैं गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ता था। अब गांव में आने के बाद मैं चाची जी के बच्चों का भी ध्यान रखता था, घर के छोटेमोटे काम में भी हाथ बटाता था परंतु फिर भी मुझे भरपेट खाना नहीं मिलता था। मुझे बचा हुआ बासी भोजन दिया जाता था। पड़ोस में खेलते समय मैं कभीकभी पड़ोसियों की चोरी छुपे गर्म रोटी खा जाता था। मेरे चाचा जी मेरे पिताजी को भिवानी से गांव में ले आए थे। मेरे पिताजी बीमार थे, जब मैं छठीं कक्षा में था तब मेरे पिताजी का भी मेरी आंखों के सामने स्वर्गवास हो गया। नवीं कक्षा में मैं गलत संगति के कारण बिगड़ गया था, मन पढ़ने में बिल्कुल नहीं लगता था। जैसेतैसे मैंने दसवीं कक्षा पास कर ली। मुझे घर पर भरपेट ताजा भोजन नहीं मिलता था जिस कारण मैं विद्यालय की प्रार्थना सभा में जाकर पीछे से सहपाठियों के स्कूल बैग से उनका खाना चुरा कर खा जाया करता था। एक बार गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने मामा के यहां था तब मैंने जीवन से निराश होकर मृत्यु को अपनाना चाहा। मेरे पास कुछ रुपए रखे थे, मैं सुबह नहाधोकर अपनी मनपसंद पैंटशर्ट पहन कर तैयार हो गया। मरने से पहले मैं अपनी इच्छा पूरी करना चाहता था जिसके लिए मैं दोपहर में ही नजदीक शहर गया। वहां कलाकंद खाया और बाजार से सल्फास (जहर )लेकर आया। मामा के घर आने पर मैंने सल्फास खा ली। गर्मी अधिक थी जिस कारण मुझे उल्टियां लग गई और मैं मर पा रहा था जी पा रहा था।अंत में, मैंने अपने मामा जी को बता दिया। मेरी नानी जी ने कहा कि जहर खाना था तो अपने गांव में खाता,यहां क्यों खाया? फिर मेरे मामा मुझे डॉक्टर के पास लेकर गए और मैं बच गया। अब मैंने दसवीं पास कर ली और मैं 11वीं में हो गया। मेरी चाची जी ने मुझे पटौदी आश्रम में शास्त्री के कोर्स के लिए भेज दिया। जब मैं आश्रम गया तब मेरा कद 5 फीट भी नहीं था। मैंने आश्रम में देखा कि वहां पर पेट भरकर गर्म खाना मिलता है। तब मैं बहुत खुश हुआ, और मेरा कद 5 फीट 7 इंच हो गया था। मैं आश्रम में ही रहता था, त्योहार के अवसर पर भी घर नहीं जाता था।दुनिया मैं मेरा ऐसा कोई नहीं था जिसके आगे मैं अपना दु: सुना सकूं। जब मैं दुखी होता था तब आश्रम के मंदिर में बनी श्री लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा के आगे बैठ कर रोता था।मुझे मेरे दादाजी का साथ मिला जो गांव में मेरे चाचा जी के पास रहते थे। मेरे दादाजी मुझे पढ़ाई का खर्चा देते रहते थे। आश्रम से शास्त्री करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से मैंने एमए  की और लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली से बीएड की। मैंने अब जान लिया था कि पढ़ाई के माध्यम से ही मैं अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठा सकता हूं। मैंने 2 साल प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया उसके बाद श्री नरेंद्र शास्त्री के मार्गदर्शन से मैं तावडू ब्लॉक में गेस्ट टीचर लग गया। मेरा शादी करने का इरादा नहीं था क्योंकि मेरे पास मेरा कोई घर नहीं था परंतु एक दिन मेरे मित्र नित्यानंद शास्त्री के पिता ने लड़की वालों के रिश्तेदारों को मुझे देखने भेज दिया। लड़की वालों ने मुझे पसंद कर लिया। लड़की भी गेस्ट टीचर लगी हुई थी, मैंने भी शादी के लिए हां कह दी। शादी के साल बाद मैं एक बेटे का पिता बन गया। हम दोनों पतिपत्नी ने गेस्ट टीचर की नौकरी में हुड्डा सेक्टर में एक प्लॉट ले लिया। वर्ष 2014 में हम दोनों स्कूल शिक्षकों की नियमित भर्ती के दौरान स्कूल प्रवक्ता बन गए। वर्ष 2016 में मैंने हुड्डा सेक्टर कोसली में अपना मकान बनाया। कोसली सेक्टर में सुविधाओं हेतु मैं संघर्ष करता रहा और पार्क, स्ट्रीट लाइट पानी आदि प्रमुख मुद्दों को सुलझाया। धीरेधीरे कोसली सेक्टर विकसित होने लगा। फिर सेक्टरवासियों ने मुझ पर विश्वास जताते हुए सर्वसम्मति से मुझे प्रधान मनोनीत किया। आज परमात्मा की कृपा से मैं अपने कुटुंबवासियों के साथ सुखपूर्वक रह रहा हूं।अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि उन परमात्मा की नजर सीधी है तो हर दु: दूर हो सकता है। हम दूसरों को अपने दु: का कारण मान लेते हैं जबकि हम स्वयं भी कहीं कहीं अपने दुखों के उत्तरदायी हैं।मेरा मेरे भाईबहनों से यही संदेश है कि जीवन में कभी हार नही माननी चाहिए। निरंतर सत्य की राह पर चले, एक एक दिन जीवन अवश्य प्रकाशित होगा। मनोहर लाल सरकार ने भी अनाथ बच्चों को सरकारी नौकरियों में अतिरिक्त अंक देकर विशेष कार्य किया है। इस लेख के माध्यम से मैं यही कहना चाहता हूं कि हम अपने आसपास रहने वाले गरीब, अनाथ बच्चों को जितना सहारा दे सके उतना सहारा अवश्य दें।ताकि उनका जीवन भी उज्जवल प्रकाशित हो सके। मैं दैनिक रणघोष समाचारपत्र के संपादक महोदय का आभार प्रकट करता हूं जिन्होंने मेरे लेख मेरी आत्मकथा को अपने समाचार पत्र में विशेष जगह दी।

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