मतदान के बाद नजर आने लगी गुरुग्राम सीट की असल कहानी

राव इंद्रजीत की हार-जीत में अब फासला खत्म हो गया है


Pardeep ji logoरणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

2024 के लोकसभा चुनाव में गुरुग्राम संसदीय सीट पर तीसरी बार भाजपा का चेहरा बने राव इंद्रजीत सिंह के लिए इस बार हार- जीत ने बराबर में बैठकर उस फासले को खत्म कर दिया है जिसकी वजह से राव अपनी अलग हैसियत रखते आ रहे थे। जिस तरह से चुनावी रूझान सामने आ रहे हैं उसने यह तो अहसास करा दिया की मुकाबला जबरदस्त है। यह सीट अपने जन्म के बाद पहली बार धर्म और जातीय गणित को बराबर साथ लेकर हार जीत का समीकरण बनाती और बिगाड़ती नजर आ रही है। इससे पहले हिंदू मुस्लिम कार्ड और राजनीतिक दलों की हवा का रझान पहले ही हार जीत की कहानी बयां कर देता था। इस बार हालात पूरी तरह से बदले हुए नजर आ रहे हैं।  मतदान से 25 दिन पहले कांग्रेस की टिकट पर उतरे जाने माने अभिनेता और राजनेता राज बब्बर वोट बैंक का ऐसा पैकेज बनकर सामने आ गए जिसमें धर्म और जाति बराबर की अहमियत लेकर चल रही थी। राज बब्बर जब मेवात में वोट मांगते तो वे मुसलमानों का आधार कार्ड बन जाते। जिस पर उनकी मुस्लिम पत्नी नादिरा बब्बर का नाम और कांग्रेस की लगी मोहर उन्हें अपना बना रही थी। गुरुग्राम- बादशाहपुर- रेवाड़ी- बावल- सोहना समेत छोटे बड़े कस्बों में पहुंचने पर पंजाबी समाज बब्बर में अपना चेहरा देखने लगा था। इसी तरह बब्बर के परिवार का कोई ना कोई सदस्य किसी ना किसी जाति व धर्म से जुड़ा होने की वजह इस सीट पर कम ज्यादा असर डालता नजर आया। जिसका राव को भी अहसास नही था।  इसके बावजूद बब्बर के लिए किसी सूरत में यहा से जीतना आसान नही है। उनका सामना ऐसे कद्दावर नेता से है जो पिछले 50 सालों से तमाम उतार चढ़ाव के बीच सफल राजनीति के योद्धा बनकर देश प्रदेश की राजनीति में अपनी अलग अहमियत रखते है। लेकिन पहली बार यह नेता भी  अपनी जीत को लेकर अपनी सोच को बदलते नजर आए। दरअसल बब्बर को ऐसे बड़े और असरदार समाज का भी समर्थन मिलता चला गया जो भाजपा नेताओं की जुबान से निकले शब्दों में खुद को अपमानित महसूस कर सही समय का इंतजार कर रहा था। इसमें जाट और एससी और एसटी वर्ग विशेष तौर से शामिल है। इसी वजह से 25 दिन पहले गुरुग्राम पर आसानी से जीत रही भाजपा के लिए यह जीत संघर्ष में आती नजर आ रही  है। इसके अलावा राव की जीत को रोकने लिए नजर आ रही चुनौतियों में कुछ ऐसी भी है जिसका जन्म अलग अलग वजहों से खुद के घर यानि भाजपा में हो चुका है। 30 अप्रैल तक हरियाणा की गुरुग्राम संसदीय सीट पर राव इंद्रजीत सिंह अपनी जीत को लेकर घोड़े बेचकर सोने की तैयारी कर रहे थे। उनका ऐसा करना उस समय तक सही था। वजह मैदान में उनके अलावा कोई नही था। इसलिए राव ने अपनी पार्टी  के स्टार प्रचारकों को भी संदेश भिजवा दिया था की वे यहा आकर अपनी ऊर्जा खर्च ना करे। पार्टी में अपने विरोधियों को भी लगे हाथ अहसास करा दिया था की वे सहयोग करे तो ठीक नही करें तो भी ठीक । राव का यह अंदाज आगे चलकर उनके लिए चुनौती की तरह मतदान होने तक नजर आया।  राव के तौर तरीकों में पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा किसी की हैसियत नही बन पा रही थी की वे गुरुग्राम सीट पर आकर उनकी ताकत बन सके। नतीजा पूरे चुनाव में स्थानीय नेता, पदाधिकारी, कार्यकर्ता  यहां तक की प्रत्येक 5-10 घरों पर बने पन्ना प्रमुख ऐसे गायब रहे मानो राजा से नाराज होकर रानी कुछ समय के लिए कोपभवन में चली जाती है। राव मोदी गारंटी घोड़े पर ही सवार होकर इधर उधर दौड़ते रहे और उनके पीछे सेना गायब थी। उनके साथ जो नजर आ रहे थे भाजपा के सैनिक की ड्रेस पहनकर  राव के अपने निजी समर्थक थे जिसके बूते पर इंद्रजीत सिंह राजनीति में इतराते हैं । ओर मौका देखते ही डंके की चोट पर अपने विरोधियों की सार्वजनिक तौर पर हैसियत बताने में नहीं चूकते। इन तमाम वजहों से राव इस पूरे चुनाव में भाजपा उम्मीदवार होते हुए भी निर्दलीय की तरह चुनाव लड़ते नजर आए जिसका नुकसान भी उनकी जीत को मुश्किल में डालता नजर आ रहा है। दूसरी तरफ राज बब्बर अपनी पार्टी में उन नेताओं  को अपना बनाने में कामयाब हो गए जिसकी वजह उनका चुनाव इधर उधर भटकने की बजाय सही दिशा में चला गया। इस तरह 25 दिनों में गुरुग्राम का चुनाव देखते ही देखते भाजपा की आसान जीत को उस दहलीज पर ले गया जहा हार – जीत अपना फासला खत्म करके बैठी है।