महाशिवरात्री पर श्रद्धालुओं ने किया जलाभिषेक

-पुलिस कर्मचारियों मुस्तैदी से कोई अप्रिय घटना नहीं

-ड्यूटी मैजस्ट्रेट सत्यपाल यादव व डीएसपी ने स्वयं संभाली मेले की कमान


 फाल्गुन माह की त्रयोदशी को महाशिवरात्री के पर्व पर गुरुवार को बाघेश्वर धाम बागोत में मेले का आयोजन हुआ। जिसमें हजारों की संख्या में उपावास रखकर आये श्रद्धालुओं ने प्राकृतिक शिवलिंग पर जलाभिषेक किया।  मेले में सुरक्षा की दृष्टि से 28 पुलिस कर्मचारियों, 6 महिला पुलिस कर्मियों,8 सिविल गणवेश कर्मचारियों सहित थाना अध्यक्ष इंस्पेक्टर उमर मोहम्मद, डीएसपी राजीव कुमार ने मेले पर नजरें टिकाए रखी। ड्यूटी मैजिस्ट्रेट के रूप में नायब तहसीलदार सत्यपाल सिंह उनके साथ पटवारी अनूप सुहाग, शशी शर्मा, वीरेंद्र गुलिया, उमेद सिंह जाखड़ मेले का निरीक्षण करते रहे। श्रद्धालुओं की भीड़ होने से घंटो बाद जलाभिषेक किया गया। मंदिर के महाराज रोशनपुरी ने बताया कि श्रद्धालुओं की ओर से करीब तीन सो कांवड लाई गई। मंदिर में आने वाले शिवभक्तों की मन्नतें पूरी होती हैं। गहन आस्था का केंद्र बने बाघेश्वरधाम में गुरुवार को मुख्य द्वार का शिलान्यास किया गया। बहुत ही सुदंर ढंग से बनाये जाने वाले इस गेट का कार्य 3 माह में पूरा होगा। आगामी सावन में आयोजित होने वाले मेले में मंदिर परिसर का अलग ही लुक सामने दिखाई देगा। मेले में भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया। शिवभक्तों द्वारा बम-बम के जयघोष के बीच प्राकृतिक शिवलिंग पर जलाभिषेक किया गया। रोशनपुरी ने बताया कि महाशिवरात्री के दौरान मंदिर व मेला कमेटी सहित प्रशासन की ओर से पूरी ऐतिहात बरती गई। जिसके चलते कोई अप्रिय घटना घटत नहीं हो सकी। 

 नंदिनी गाय पर बाघ के आक्रमण से बना बाघेश्वरधाम

मंदिर के महंत रोशनपुरी व ग्रामीण बम लहरी ने एक किवंदती के माध्यम से बताया कि ऋषि पिप्लाद यहां पर तपस्या कर रहे थे, बाद में उनकी माता सविता यहां पर सती हुई थी। राजा दिलीप को कोई संतान नहीं थी। जिसे लेकर वे दुखी थे, दुख के निवारण के लिए वे अपने कुलगुरू वशिष्ठ के पास गए ओर अपना दुखद वृतांत सुनाया। गुरु वशिष्ठ ने पिप्लाद ऋिषि के आश्रम में नंदिनी नामक गाय व कपिला बछिया को उपवास रखकर चराने को कहा। राजा दिलीप प्रतिदिन उपवास रखकर उन्हें चराने जंगल में जाता तो एक दिन शंकर भगवान ने राजा की परीक्षा लेने के लिए बाघ का स्वरूप धारण कर बछिया पर धावा बोल दिया। राजा की नजर जब बाघ पर पड़ी तो हाथ जोडक़र प्रार्थना करते हुए कहा कि वह उन्हें अपना भोजन बना ले ओर बछिया को बख्शीश दे। माना गया कि वे बछिया को खाने देते तो गाय का श्राप लगेगा ओर गाय को खायेगा तो उनकी तपस्या पूरी नहीं हो सकेगी। ऐसा कहकर उन्हें अपने आप को बाघ के सामने पटक दिया। कुछ समय बाद कोई हरकत नहीं होने पर उन्होंने सिर उठाकर देखा तो उनके सामने भोले शंकर खड़े थे। इस घटना के बाद इस स्थान का नाम बाघेश्वर धाम पड़ा। पिप्लाद की माता सविता का मंदिर भी शिवालय के सामने बना हुआ है। 

यहां पर प्रसिद्ध प्राचीन प्राकृतिक स्वयंभू शिवलिंग है। जिनकी महिमा निराली है। यहां पर आने वाले शिवभक्तों की शंकर भगवान सभी मन्नतें पूरी करते हैं। शिवभक्त प्रतिवर्ष सावन व फाल्गुन माह की त्रयोदशी को आयोजित मेले में शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।  शास्त्र संवत एक किवंदती के मुताबिक एक बार ब्रह्मा जी व विष्णु जी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्मा जी सृष्टि के रचियता होने के कारण श्रेष्ठ का दावा करत रहे वहीं भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ बता रहे थे। उनके सामने एक शिवलिंग प्रकट हुआ था। दोनों देवताओं ने सहमति से निश्चय किया कि इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूंढने लगे। छोर न मिलने के कारण विष्णु जी लौट आए लेकिन ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने विष्णु जी से कहा कि वे छोर तक पंहुच गए हैं। उन्होंने केतकी के फूल को इस बारे में साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिवजी वहां प्रकट हुए ओर उन्होंने ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया ओर केतकी के फूल का श्राप दिया कि वे पूजा से वर्जित रहेगें। उसके बाद पूजा में केतकी के फू लों का इस्तेमाल नहीं होता तथा ब्रह्माजी की पूजा भी कम हो गई।  

मंदिर कमेटी हुई मुस्तैद

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निवर्तमान ग्राम सरपंच विनोद कुमार ने बताया कि महाशिवरात्री के पर्व पर बीडीपीओ की ओर से दुकानों की तहबाजारी की रसीदें काटी गई। उन्होंने बताया कि श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए यहां पर 7 आंगनवाड़ी केंद्र व करीब 30 धर्मशाला बनी हुई हैं। इस मौके पर महिपाल नम्बरदार, कैलाश चंद, जिले सिंह, सुशील कुमार, अरूण कुमार सहित मेला कमेटी सद्स्य हाजिर थे।

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