मौजूदा लोकसभा चुनाव पर डंके की चोट

रावण को विभीषण के भेद ने मारा था, यही हाल भाजपा- कांग्रेस उम्मीदवारों का होगा


    दान सिंह ने बराबर की उंगली दिखाकर गलती कर गए की इस चुनावी बारात में वे दूल्हा है। किरण तो बाराती बनकर आई थी। इसलिए उंगली का जवाब उंगली से ना देकर किसी ओर अंदाज में भी दिया सकता था


रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

हरियाणा की 10 लोकसभा सीट के नतीजे छह माह बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव की स्क्रिप्ट लिखने जा रहे हैं। हार जीत की मुख्य वजह कांग्रेस व भाजपा में अपने उम्मीदवार के खिलाफ सार्वजनिक विरोध और अंदरखाने पनप चुका भीतरघात रहेगा। ऐसी कोई सीट नही जहा इस तरह के हालात नही बने हो।  कही कम है तो कही ज्यादा। सार्वजनिक विरोध में भिवानी- महेंद्रगढ़ से कांग्रेस की मजबूत लीडर किरण चौधरी सबसे आगे आ चुकी है जब उन्होंने 22 मई को चरखी दादरी की रैली में कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी के बराबर में बैठकर यहां से कांग्रेस उम्मीदवार राव दान सिंह को सीधी उंगली दिखाकर बता दिया की लड़ाई अब घर से निकलकर सड़क पर आ चुकी है जिसे रोक पाना किसी के बस में नही है। दान सिंह ने भी बराबर की उंगली दिखाकर जवाब दे दिया लेकिन गलती कर गए की इस चुनावी बारात में वे दूल्हा है। किरण तो बाराती बनकर आई थी। इसलिए उंगली का जवाब उंगली से ना देकर किसी ओर अंदाज में भी दिया सकता था जिसमें किरण की उंगली उलटे उसी की तरफ उठ जाती।  रामायण में रावण समय रहते अपने छोटे भाई विभीषण की भावनाओं को समझ पाते या विभीषण अपने भाई को किसी तरह समझा पाने में कामयाब हो जाते तो रामायण का स्वरूप ही दूसरा होता। आज तक यही बताया और समझाया जा रहा है की राम ने रावण का वध किया जबकि  कटू सत्य यह है की विभीषण के भेद से ही साधारण राम शक्तिशाली रावण को मार पाए थे। अगर रावण ने अहंकार में चूर होकर विभीषण को लात मारकर लंका से नही निकाला होता और वे चुपचाप समय गुजार देते तो आज रावण का स्वरूप ही दूसरा होता। रामायण के इस दृष्टांत को चुनाव में भीतरघात ओर विरोध को आसानी से समझा जा सकता है। उंगली का जवाब उंगली से मिलने पर किरण यहा राजनीतिक कूटनीति के तौर पर जीत गईं। अब उसके समर्थक भाजपा उम्मीदवार चौधरी धर्मबीर सिंह से ज्यादा पसीना दान सिंह को हराने में लगाएगे। जाहिर इसका बड़ा असर दान सिंह की मजबूत नजर आ रही दावेदारी पर नजर आएगा। 4 जून को आने वाले नतीजों से तस्वीर साफ हो जाएगी। यहा दान सिंह को गुरुग्राम से कांग्रेस उम्मीदवार राज बब्बर के संयम से सीखना चाहिए था। 20 दिन पहले एकदम नए चेहरे के तौर पर मैदान में उतरे राज बब्बर जिसके लिए यह सीट उस दुल्हन की तरह थी जिसे ससुराल में पहले दिन से ही रिश्तों की बुनियाद को अपनी समझदारी व व्यवहार से मजबूत करना था। राज बब्बर को अच्छी तरह आभास हो गया था की यहां कांग्रेस के भीतर बाहर कौन उनके साथ दिल से जुड़ा हुआ है ओर कौन दिमाग से उसे कमजोर करने में लगा हुआ है। इसलिए सबसे पहले उन्होंने रेवाड़ी को  डैमेज कंट्रोल किया जहां से इस सीट के प्रमुख दावेदार पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव किसी ना किसी बहाने से रूठकर  रायबरेली में राहुल गांधी, सिरसा से कुमारी शैलजा, हिसार में जयप्रकाश को जीताने में ज्यादा समय गुजर रहे थे। राज बब्बर का चुनाव इसलिए मुकाबले में आ गया की उन्होंने अपनी हैसियत और अहमियत पर इतराने की बजाय उसे जनता के हवाले कर बता दिया और अहसास करा दिया किी वे आम लोगों के बीच से ही निकलकर यहां तक पहुंचे है। किसी खैरात में, ऊपर से टपकर या किसी राज घराने से  नही आए। इसलिए उनके खिलाफ उठने वाले विरोध ने भी समय रहते अपना रास्ता बदल लिया। दूसरी तरफ भाजपा उम्मीदवार राव इंद्रजीत सिंह अपने अलग ही अंदाज की वजह से अपने घर में ही घिरते रहे हैं। वे अपने विरोधियों को या तो जड़ से खत्म करते हैं या उन्हें मजबूर कर देते है की वे उनके तौर तरीकों को स्वीकार कर ले। इसलिए राव की राजनीति चुनाव के समय अपने अंदाज में आगे पीछे होने के साथ साथ बनती बिगड़ती रही है। जिसमें वे अलग अलग वजहों से कई बार सफल हुए है तो कहीं से मिल रही चुनौतियां उन्हें पीछे धकेलती रही है। कुल मिलाकर इस चुनाव में भाजपा- कांग्रेस से जीतने और हारने वाले उम्मीदवारों में ज्यादातर की कहानी के मुख्यदार वही होंगे जिसे राजनीति भाषा में भीतरघात कहा जाता है। रामायण में विभीषण को बड़े भाई का भेद बताने पर इसलिए गलत नही ठहराया जा सकता क्योंकि वे धर्म के साथ थे।