रणघोष की सीधी सपाट: बात नप चेयरमैन रेवाड़ी सीट की

मजबूत नजर आ रहा निर्दलीय उम्मीदवार, भाजपा अपनी लड़ाई में, कप्तान के फैसले से बदल रहा गणित


 रणघोष खास. सुभाष चौधरी


मौजूदा हालात में नगर परिषद रेवाड़ी सीट पर चेयरपर्सन पद के लिए निर्दलीय उम्मीदवार मजबूत नजर आ रहा है। बशर्ते उसकी छवि साफ हो और जाना पहचाना चेहरा हो। इसकी वजह भी साफ है। जैसे ही चुनाव नजदीक आ रहे हैं भाजपा में अलग अलग कारणों से कलह तेज हो रही है। उधर कांग्रेस की तरफ से पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ेगा। ऐसे में रेवाड़ी के मतदाता थोपे गए या किसी के आशीर्वाद से मैदान में उतारे जाने वाले डमी उम्मीदवार को इसलिए नहीं चुनेंगे क्योंकि उन्हें सीधे तौर पर चेयरपर्सन चुनने का अधिकार मिल गया है। इससे पहले निर्वाचित पार्षद मिलकर चेयरमैन बनाते थे। चेयरपर्सन भारत भ्रमण समेत अनेक तरह की सुविधा शुल्क की शर्तों को पूरा करके बनते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव अपनी पत्नी उपमा यादव की तैयारी में जुट गए हैं। इससे पहले वे रेवाड़ी विधानसभा सीट पर निर्दलीय लड़कर 36 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। सतीश यादव की छवि दंबग और बेबाक नेता के तौर पर रही है। इसी तरह आजाद प्रत्याशी के तौर पर निर्मला राव मैदान में उतर चुकी है। जो नप पूर्व प्रधान विजय राव की पत्नी है। विजय राव खुद भी पार्षद का चुनाव भी लड़ रहे हैं। विजय राव के पास नगर निकाय चुनाव का अच्छा खासा गणित है। वे लगातार पार्षद बनते आ रहे हैं। उन्हें 2005 में नप प्रधान की जिम्मेदारी भी मिल चुकी है। उनके पास पुराने पार्षदों की टीम भी है जो अपने वोट बैंक से समीकरण इधर उधर करने की ताकत रखती है। कुल मिलाकर आज की स्थिति में चुनाव होते हैं तो निर्दलीय उम्मीदवार भाजपा या कांग्रेस किसी भी प्रत्याशी के साथ मुकाबले में रहेगा। यानि दोनों राष्ट्रीय पाटियों में किसी एक को तीसरे नंबर पर आना पड़ सकता है। अगर कप्तान अपने फैसले को बदलकर परिवार के सदस्य को मैदान में उतारते हैं तो वे पूरी तरह मजबूत दावेदारी में खड़े नजर आएंगे। भाजपा की स्थिति को समझ पाना मुश्किल है। ऐसा लग नहीं रहा कि पार्टी के नेताओं एवं पदाधिकारियों ने विधानसभा 2019 के चुनाव से कोई सबक लिया हो। जिस उम्मीदवार को जीताने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को आना पड़े, खुद सीएम मनोहरलाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा को अनुरोध करना पड़े। वह पार्टी की अंदरूनी लड़ाई के चलते हार जाए। यही हालात दुबारा बन चुके हैं। इसका मतलब साफ है नगर निकाय चुनाव में मतदाता राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के मुद्दों पर या बनती- बिगड़ रही रही हवाओं की चपेट में आकर किसी सूरत में वोट नहीं करेंगे। वे सीधे तौर पर चेयरपर्सन से जुड़ाव चाहते हैं ताकि राजनीति में बिचौलिए के खेल से खुद को बचाया जा सके। कप्तान अपनी 35 साल की राजनीति में नगर निकाय के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र के हर घर व मोहल्ले से पूरी तरह से वाकिफ है। 2019 के विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद उनका गणित एक साल बाद भी मजबूत है। उधर भाजपा ने मिली हार  के एक साल बाद भी कोई सबक नहीं मिलया। दूसरा नगर निकाय चुनाव की घोषणा से एक दिन पहले घोषित हुई भाजपा की जिला कार्यकारिणी के बाद स्थिति बजाय उत्साहवर्धन होने के बिखर ज्यादा रही है। अंदरखाने कोसली विधायक लक्ष्मण सिंह यादव, प्रदेश प्रवक्ता वीर कुमार यादव, सतीश खोला एवं कुछ पुराने पदाधिकारी विशेष तौर से इस कार्यकारिणी को लेकर एकदम संतुष्ट नहीं है बेशक वे मीडिया के सामने एकजुटता दिखाते हुए नजर आए। यहां जिला अध्यक्ष हुकम यादव के लिए भी पहली और बड़ी चुनौती रहेगी। इसका कितना असर इस चुनाव में नजर आएगा वह घोषित होने वाले उम्म्मीदवार के बायाडोटा से पता चलेगा। इतना समय भी नहीं है कि सबकुछ तेजी से बदलने की ताकत भाजपा रखती है। बड़े नेता किसान आंदोलन समेत अनेक मसलों में पूरी तरह से उलझे हुए हैं। उधर कप्तान का कमजोर पक्ष भाजपा की तरह मजबूत संगठन नहीं होना है। कप्तान के खेमें में वहीं है जो उनकी विचारधारा को कांग्रेस की सोच बताते हैँ। इसके अलावा कांग्रेस एक तबका ऐसा भी है जो अलग अलग धड़ों में छोटी- बड़ी हैसियत से खामोश रहकर अपने वोटों को इधर उधर कर सकता है। कुल मिलाकर 17 दिसंबर को उम्मीदवारों को लेकर तस्वीर काफी साफ हो जाएगी। वर्तमान में तस्वीर निर्दलीय उम्मीदवार की तरफ जाती नजर आ रही है।

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