हुडडा सीएम बनने के लिए मैदान में हैं, कप्तान को भी अच्छी तरह पता है.. बात खत्म
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव ने कहा कि हरियाणा में अगला विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। जीतने के बाद विधायक तय करेंगे कि सीएम किसे बनना है। कप्तान इससे पहले भी यही बात करते आए हैं और कांग्रेस सरकार बनने पर वे मंत्री बने रहे और भूपेंद्र सिंह हुडडा सीएम। हरियाणा में कांग्रेस के मौजूदा हालात में वजूद की बात करें तो उसके जिंदा रहने की आक्सीजन फिलहाल भूपेंद्र सिंह हुडडा के सिलेंडर से मिल रही है। इसलिए गांधी परिवार एवं कांग्रेस के रणनीतिकारों ने कुछ माह पहले हुडडा को हरियाणा की कमान सौंप दी। जहां तक कप्तान की बात है। वे रेवाड़ी आकर तो मीडिया में बहुत कुछ कह जाते हैं।दिल्ली- चंडीगढ़ गुरुग्राम में जूनियर- सीनियर हुडडा की मौजूदगी में अपने अंदाज को बदल देते हैं। दरअसल कप्तान के जितने अच्छे रिश्ते कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा व किरण चौधरी से रहे हैं हुडडा से उतने ही अवसरवादी। हुडडा राज के 10 साल के शासनकाल में यह नजारा कई बार लोगों ने देखा है। कप्तान का जोश तीन वजहों से नजर आ रहा है। पहला वे कांग्रेस में ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष है। ओबीसी देश की राजनीति का सबसे बड़ा वोट बैंक है। इसलिए देशभर में कांग्रेस के प्लेटफार्म पर कप्तान अपनी अलग पहचान बनाते जा रहे हैं। अब उनका सीधा कनेक्शन शीर्ष नेतृत्व एवं खासतौर से गांधी परिवार से भी सीधा सपाट बन चुका है। दूसरा वे जिस क्षेत्र से संबंध रखते हैं वहां से भाजपा में तीन महत्वपूर्ण शक्तियां केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र सिंह यादव एवं केंद्रीय संसदीय बोर्ड भाजपा की सदस्या डॉ. सुधा यादव विशेषतौर से ओबीसी वोट बैंक का नेतृत्व करती हुई नजर आ रही है। ऐसे में कप्तान की ताकत को बनाए रखना कांग्रेस की जरूरत है। तीसरा सबसे महत्वूपर्ण बिहार में जेडीयू एवं राजद सरकार की वापसी। यहां बता दें कि कप्तान के बेटे एवं रेवाड़ी से कांग्रेस विधायक चिरंजीव राव बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के जीजा एवं लालूप्रसाद यादव के दामाद है। लालूप्रसाद यादव के गांधी परिवार से रिश्ते बेहद खास रहे हैं। इस सबके बावजूद कप्तान राजनीति की बड़ी पारी खेलने के लिए अभी संघर्ष कर रहे हैं। वजह भी साफ है कप्तान की पिछले 30 सालों की राजनीति रेवाड़ी विधानसभा के दायरे तक सीमित रही है। उनका अन्य क्षेत्रों में कोई विशेष प्रभाव नहीं रहा है। सही मायनों में 2019 का विधानसभा चुनाव महज 1317 वोटों से जीतना भी कप्तान परिवार के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। कप्तान ने भी पिछला गुरुग्राम लोकसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लगा लेकिन पार नहीं पड़ी। इतना जरूर रहा कि कप्तान इसी बहाने अपना राजनीति दायरा बढ़ाने में कामयाब रहे। कप्तान की खास बात यह भी है कि वे बेबाक बोलते हैं और परवाह नहीं करते। वर्तमान में केंद्र एवं राज्य सरकार पर जितना हमला कप्तान ने किया शायद ही किसी नेता ने किया होगा। कप्तान की प्रॉब्लम यह है कि वे कई मौकों पर उस मासूम व शरारती बच्चे की तरह नजर आते हैं जो अचानक चिल्लाना, रूठना शुरू कर देंगे थोड़ी देर बाद समझाने पर एकदम शांत होकर उसी की तारीफ करना शुरू कर देंगे जिस पर हमला कर रहे थे। कुल मिलाकर कप्तान के अंदाज को कांग्रेस के समझदार नेता बखूबी समझते हैं इसलिए वे उनके बयानों पर टिप्पणी करने की बजाय मुस्करा देते हैं। हुडडा के साथ उनका रिश्ता भी कुछ इसी लहजे में बना हुआ है।