रणघोष खास. प्रदीप नारायण
मरीज का नाम: कोरोना पीड़ित
मरने की वजह: समय पर आक्सीजन नहीं मिलना , नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन- घटिया- गलत दवाईयों का इस्तेमाल
दोषी : मरने वाला जिसने मास्क नहीं पहना, सेनेटाइज नहीं किया
सजा मिलनी चाहिए: मृतक के परिजनों को, जिसने उसे घर से बाहर निकलने दिया , आवाज उठाई
न्याय की परिभाषा: रसूक- पैसा जिसके पास यह है न्याय उसे मिलेगा
सुझाव : जितनी जल्दी हो हादसे को भूल जाओ, नहीं तो हर पल मरते रहोंगे
देश में जो लोग धर्म- जाति के नाम पर हिंदू- मुस्लिम खेलते रहते हैं। वे अयोध्या में राम मंदिर के लिए खरीदी गई जमीन के प्रोपर्टी डीलर्स सुलतान अंसारी- रवि मोहन तिवारी से प्रेरणा ले। कैसे दोनों ने मिलकर राम नाम की लूट की असल परिभाषा बताईं। मजाल रत्ती भर भी शोर मचा हो। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह देश के किसी भी कोने में किसी भी तरह की जमीन खरीद-फरोख्त में बतौर गवाह में एक हिंदू- एक मुसलमान की अनिवार्यता तय करें। ऐसा करते ही देश में आपसी भाईचारा लौट आएगा। गली मोहल्लों में खड़ी हुईँ नफरत- हिंसा की दीवारें खुद ही ढह जाएगी। इतना ही नहीं सुलतान अंसारी- रवि मोहन का विशेष सम्मान के साथ सरकारी खर्चें पर देशभम्रण कराए ताकि संविधान में छिपा असली भारत नजर आए। इसी तरह देशभर में कोरोना के इलाज के नाम पर नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन- घटिया- गलत दवाईयों का भयंकर कारोबार चल रहा है। कार्रवाई के नाम पर कुछ पकड़े गए ओर बाद में नाश्ता पानी करके बाहर भी आ गए। ऐसा करने वालों को भी विशेष सम्मान मिलना चाहिए। वजह उन्होंने यह साबित कर दिया कि देश में मौत का व्यापार कितना आसान ओर महंगा है। सोचिए आतंकवादी हमला कर हमारे जवानों की शहादत लेते हैं तो खून खौल उठता है। राजनीति चरम पर पहुंच जाती है। सड़कें प्रदर्शन करने को उतारू हो जाती है। दूसरी तरफ कोरोना काल में हजारों- लाखों कोरोना मरीजों की नसों में नकली दवा- इंजेक्शन के नाम पर जहर डाल दिया गया। वे तड़फते बिलखते दुनिया से चले गए। मजाल न्यूज चैनलों पर आयुर्वेदिक- ऍलोपैथी की ठेकेदारी करने वाले ऐसा करने वालों के खिलाफ सड़कों पर नजर आए हो। किसी डॉक्टर पर मरीज के परिजन हमला कर देते हैं तो आईएमए एक आवाज में गुस्सा करती नजर आती है। ऐसा करना जायज है। वहीं आईएमए चंद लालच में घटिया दवाईयां देने वाले एवं इंजेक्शन लगाने वाले डॉक्टरों की वजह से हुईं मरीजों की मौत पर खामोश रहती है। ले देकर इस सवाल पर एक जवाब होता है कानून अपना काम कर रहा है। हरियाणा के रेवाड़ी शहर में विराट या हो आगरा का पारस समेत देश के हजारों ऐसे अस्पताल, जहां सिस्टम की जर्जरता व घोर लापरवाही से आक्सीजन की कमी के चलते हजारों मरीजों की जान चली गईं। जांच के नाम पर मृतक के परिजनों को रोज मानसिक- आर्थिक तौर पर मारा जा रहा है। इसी तरह कोरोना के खिलाफ आयुर्वेदिक पद्धति को सबसे ताकतवर बताने वाले बाबा रामदेव एवं उनकी टीम अभी तक यह स्पष्ट नहीं कर पाई है कि पतंजलि संस्था में डेयरी कारोबार के सीईओ सुनील बंसल की कोरोना से मौत कैसे हो गईं। उनके पास तो इस वायरस से निपटने के अचूक नुक्से थे फिर चूक कैसे हो गईं। पताजंलि के अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। सवाल अनगिनत है। जवाब एक है पैसा- रसूक जिसके पास है न्याय की परिभाषा वहीं तय करेगा। हालांकि यह बाजारू सच है संपूर्ण सत्य नहीं है। इसे हमारे देश का दुर्भाग्य कहिए या फिदरत। हमारे यहां रसूक- पैसो के दम पर गांव के सरपंच से लेकर, जिला पार्षद, विधायक, सांसद, मंत्री, पीएम, राष्ट्रपति, न्यायधीश, डॉक्टर्स, इंजीनियर, सफल उद्योगपति, छोटा- बड़ा अधिकारी बनना आसान है लेकिन जिंदगी में एक बेहतर इंसान बनना बहुत मुश्किल। वजह पैसो- रसूक से इंसानों काे खरीदा जा सकता है। हमारे शिक्षण संस्थानों में अच्छे नंबर कैसे आएंगे वहीं असली गुरु है। जिंदगी में एक अच्छा इंसान कैसे बने यह बताने वालों के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए सोचिए जिस राम ने मर्यादा के लिए धोबी के कहने पर अग्नि परीक्षा देने वाली माता सीता का त्याग कर दिया। उसी राम के नाम पर खरीदी जाने वाली जमीन की खरीद फरोख्त के असल सच को सामने लाने की बजाय एक दूसरे पर कीचड़ उछाली जा रही है। अगर यही रामराज है इसे समझिए नहीं तो अपनी अच्छी- खराब बारी का इंतजार करिए। यहां हिसाब सभी का होना है।