सीधी सपाट बात :सहकारिता विभाग में 1992 में जन्मा घोटाला 32 साल का हो गया, शोर अब मच रहा है

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

हरियाणा में सबसे ज्यादा चर्चा बटोर रहा सहकारिता विभाग का घोटाला अपने जन्म के 32 साल बाद पकड़ में आया है। 1992 से लेकर  2013 तक हरियाणा में अधिकांश समय कांग्रेस सत्ता में रही उसके बाद इनेलो ने राज किया। 2014 से आज तक भाजपा सत्ता में है। यानि इस घोटाले ने हरियाणा की सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की सरकारों में जमकर इंजवाय किया। किसी भी घोटाले का 32 साल तक जिंदा रहना यह साबित करता है कि वह  राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ ब्रेकफास्ट, लंच एवं डीनर करता रहा है । अगर यह कहना गलत है तो घोटाला कभी का दम तोड़ चुका होता। जहां तक अधिकारियों की बात है। बिना असरदार नेताओं की सहमति से अपने दम पर खुलेआम इस विभाग की ग्रांट को अकेले डकार लेना किसी भी सूरत में संभव नहीं है। यहां कांग्रेस व अन्य विपक्ष दल भाजपा सरकार पर हमला कर रहे हैं जबकि घोटाले का जन्म तो उनकी सरकार में हो चुका था। मौजूदा सरकार की सरकारी जांच एजेंसी ने तो इसका खुलासा किया है। विपक्ष का यह कहना काफी हद तर्कसंगत हो सकता है कि सरकार असली गुनाहगारों का बचा रही है। इस पर सीएम मनोहरलाल ने सदन में साफ कर दिया कि किसी को भी नहीं छोड़ेगे चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों ना हो। सीएम सदन में पूरी तैयारी के साथ इस घोटाले का पर्दाफाश करने का प्लान लेकर आए थे। ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले लोकसभा एवं उसके बाद विधानसभा चुनाव में किसी ना किसी नेता पर गाज गिरती है तो इससे साफ हो जाएगा कि विपक्ष का निशाना सही था। अगर ऐसा नहीं है तो भाजपा की आज यह  मजबूरी भी नहीं है कि वह अपने घोटालेबाज व दागदार नेताओं को सिर पर बैठाकर उसे ढोहती रहे।  सदन में सीएम के नजरिए से यह भी साफ नजर आ रहा है कि वे अब 2014 वाले सीएम नहीं है जिसका विपक्ष उनकी योग्यता एवं राजनीति समझ का मजाक उड़ाता रहा है। देखा जाए तो राजनीति में नेताओं का भ्रष्टाचार पर शोर मचाना उसी तरह है जिस तरह 100 चूहे खाकर बिल्ली हज को चली.। राजनीति सिस्टम में तो भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए भ्रष्टाचार किया जाता है जिसकी शुरूआत चुनाव में प्रत्याशी के नामाकंन पत्र में अपनी संपत्ति के दिए ब्यौरे से होती है।