स्कूल में सही ना पढ़ाने वाले बाजारू शिक्षकों के इस खेल को समझिए

हमारे कोचिंग सेंटर आओ, गारंटी के साथ सर्वाधिक नंबर पाओ, शोर मचे तो ले देकर चुप हो जाओ


विद्यार्थियों का कहना है कि सर हमें स्कूल में भले ही न पढ़ाएं, लेकिन कोचिंग में उनसे खूब मदद मिलती है. सर का गेस बहुत सटीक होता है.


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

 छोटे बड़े शहरों- कस्बो में सर्वाधिक नंबरों से पास होने के सुनहरे सपने दिखाकर बेहिसाब खुल रहे कोचिग सेंटरों को लेकर हरियाणा एवं जिला स्तर पर अधिकारियों के पास एक ही नियम है। किसी शिकायत पर संचालक को नोटिस देकर बुलाओ, कार्रवाई के नाम पर धमकाओ  ओर ले देकर चुप हो जाओ। अगर इसी दरम्यान कोचिंग सेंटर में कोई अप्रिय घटना हो जाती है तो मामला दर्ज कर कुछ समय बाद उसे भूल जाओ। रेवाड़ी नगर परिषद सीमा से सटे गांव हो या शहर  की शायद ही कोई ऐसी गली होगी, जहां कोई कोचिंग सेन्टर न हो. लेकिन शहर की गलियों व नुक्कड़ों पर खुले ये कोचिंग सेंटर न ही सरकार से पंजीकृत हैं और न ही सरकार के ज़रिए जारी मानकों का अनुपालन करते हैं।  ऐसे में परीक्षा का रिज़ल्ट आने के बाद छात्र अपने आपको ठगा महसूस करते हैं। कोचिंग संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों का कहना है, ‘स्कूल में टीचर सही से नहीं पढ़ाते हैं, इसलिए कोचिंग करना ज़रूरी हो जाता है। वो बताते हैं, ‘जो सर स्कूल में पढ़ाते हैं, वही अपने कोचिंग में मैथ की क्लास भी लेते हैं. सर हमें स्कूल में भले ही न पढ़ाएं, लेकिन कोचिंग में उनसे खूब मदद मिलती है. सर का गेस बहुत सटीक होता है. ज़्यादातर एग्ज़ाम में वही आता है। एक छात्रा बताती हैं, ‘स्कूल में सेलेबस पूरा नहीं होता है. अब क्योंकि एग्ज़ाम से पहले कोर्स भी कम्प्लीट करना होता है. ऐसे में कोचिंग करना बहुत ज़रूरी हो जाता है.। कई एक कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले बच्चों से बातचीत करने पर ये बात भी खुलकर सामने आती है कि ज़्यादातर टीचर्स ने सरकारी व गैर-सरकारी स्कूलों में कार्यरत होने के बावजूद खुद का कोचिंग सेंटर भी खोल रखा है. और यहां छात्र परीक्षा में अच्छे अंक पाने की लालच में ज़्यादा फ़ीस देकर पढ़ रहे हैं। ज़ाहिर है, इसका ख़ामियाज़ा इन छात्रों के अभिभावकों को भुगतना पड़ता है. जहां एक ओर स्कूलों की भारी भरकम फ़ीस तो दूसरी ओर ट्यूशन फ़ीस के बोझ तले दबे जा रहे हैं। मोटी फ़ीस वसूल करने वाले इन कोचिंग सेन्टरों ने कमाने का एक और नया ज़रिया तलाश कर लिया है. जीएसटी के नाम पर छात्रों के अभिभावकों से अलग से पैसे वसूल किए जा रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि कोचिंग संचालक कोर्स पूरा करने के नाम पर 3-4 महीने की फ़ीस एक साथ ले लेते हैं. जिसमें एक बार फ़ीस जमा हो जाने के बाद कोई रिटर्न पॉलिसी नहीं है.। कोचिंग के इस पूरे धंधेमें एक और बात ग़ौरलतब है कि ये सेन्टर छात्रों के ज़रिए दी गई फ़ीस की कोई रसीद नहीं देते हैं.

दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार के नियमानुसार स्कूल-कॉलेज के समय, कोचिंग क्लास लेने की अनुमति नहीं है, लेकिन शहर के कई कोचिंग सेंटर्स स्कूल-कॉलेज के समय पर अपनी क्लासेज़ चलाते हैं, जिसकी वजह से छात्र नियमित रूप से अपने स्कूल या कॉलेज नहीं जाते। इतना ही नहीं, इन कोचिंग सेन्टर्स के इंफ्रास्ट्रक्चर की बात की जाए तो एक दो कमरों में भेड़-बकरियों की तरह छात्रों को बैठाकर पढ़ाया जाता है. यहां तक कि शहर की हर आवासीय कॉलोनियों में भी धड़ल्ले से कोचिंग सेंटर्स खोल दिए गए हैं, जिससे लोगों को बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सेक्टरों की गलियों में धड़ाधड़ कोचिंग खुल रहे हैं। पूरे दिन बच्चों का आना-जाना लगा रहता है, जिससे शोर तो होता ही है. साथ ही अपने ही घर में आना-जाना भी मुश्किल हो जाता है. बच्चे अपनी साईकिल सड़क पर ही लगा देते हैं, जिससे यहां जाम लगना स्वाभाविक है. आए दिन रास्ते और पार्किंग को लेकर बहस होती रहती है. लोगों की शिकायत करने के बाद भी कोचिंग संचालक सुनने को तैयार नहीं होते हैं। शिक्षा विभाग के पास कोचिंग सेंटर को लेकर कोई रिकार्ड नहीं है। 80 फीसदी कोचिंग सेंटर किराए के भवनों में चल रहे हैं। भवन मालिक, कोचिंग संचालकों से किराया भी मोटा वसूल कर रहे हैं, लेकिन वे कमर्शियल डायवर्सन कराने को तैयार नहीं हैं। 

इन मापदंडों का होना जरूरी है


सभी कोचिंग सेंटर्स संचालकों को अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
प्रत्येक कोचिंग सेंटर पर मुख्य द्वार के अलावा इमरजेंसी गेट भी हो।
जमीन तल से ऊपर संचालित कोचिंग्स में सीढिय़ां भी चौड़ी हों।
सभी कोचिंग सेंटर्स पर सीसीटीवी कैमरों का इंतजाम हो।
प्रत्येक कोचिंग सेंटर पर आग बुझाने का संयंत्र उपलब्ध होना चाहिए।
कोचिंग सेंटर ऐसी गली में संचालित हो, जहां दमकल आ-जा सके।
जिन भवनों में कोचिंग चल रही हैं, उनका कमर्शियल डायवर्सन कराया जाए।

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