हरियाणा की राजनीति में इस नेता को समझना जरूरी है

अशोक तंवर गहराई नाप रहा है, विरोधी उसे डूबा समझ बैठे  


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

अशोक तंवर। हरियाणा की राजनीति में ऐसा नाम जिसकी मौजूदगी से माहौल करवट लेने लगता है। जब जब उसके विरोधियों ने यह अफवाह फैलाई कि उसकी राजनीति नौका डूब गई है। कुछ दिन बाद रिपोर्ट आती है तंवर तो राजनीति के समुद्र में गहराई नाप रहा है। कांग्रेस में अपने मिजाज से टीप टॉप की लीडरशिप करने के बाद आम आदमी पार्टी की जमीन को मजबूत कर रहे अशोक तंवर की तरफ आज भी राजनीतिक दलों की निगाहें हैं।

हरियाणा की राजनीति में अशोक तंवर पर लिखना इसलिए जरूरी है कि इस युवा नेता ने 47 साल की उम्र में राजनीति की शतरंज में सीधे राजा को चुनौती दी है। इसके लिए वह सबकुछ कुर्बान करने को तैयार रहता है। कांग्रेस में हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष रहकर तवंर ने सबसे ताकतवर नेता एवं 10 साल सीएम रह चुके भूपेंद्र सिंह हुडडा से सीधे लड़ाई लड़ी। पार्टी में प्रतिष्ठा एवं चौधर की इस लड़ाई में हालात इतने बेकाबू हो गए कि तवंर की जिंदगी दांव पर लग गईं। उनके विरोधी उसे गलती से संगठन का पदाधिकारी समझ बैठे जबकि तंवर अपने व्यवहार, कुशल वक्ता की बदौलत हरियाणा में कम ज्यादा अपनी जमीन तैयार कर चुका था। तंवर प्रदेश के ऐसे दलित नेता है जिसकी 36 बिरादरी में सीधी पकड़ है।  झज्जर में जन्में, सिरसा लोकसभा सीट से 2009 में कांग्रेस की टिकट पर सांसद बने तंवर का युवाओं में आज भी जबरदस्त क्रेज है। इसलिए किसी भी जिले में 24 घंटे की कॉल पर जलसा कर देते हैं।  हाजिर जवाब उसके शानदार नेता होने का अहसास करा देता है। मीडिया में उनके चुटीले अंदाजों को अच्छी खासी सुर्खियां मिलती है।  कांग्रेस यूथ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर तंवर ने कांग्रेस में छात्र राजनीति को इतना मजबूत कर दिया था कि भाजपा को भी अपनी छात्र राजनीति रणनीति को बदलना पड़ा। कांग्रेस में जब तक अशोक तंवर रहे गांधी परिवार से उनकी नजदीकियां रही। हुडडा से जबरदस्त टकराव के चलते कांग्रेस छोड़ने  के बाद उसे  वापस लाने के  लिए गांधी परिवार ने काफी प्रयास किए लेकिन हुडडा के प्रभाव व बदलते राजनीतिक हालात में दूरियां बनती चली गईं। राजनीति जानकारों की माने तो 2019 के चुनाव में अगर तंवर कांग्रेस में पूरी तरह तालमेल के साथ सक्रिय होते तो राजनीति का गणित दूसरा ही होता। कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई की वजह से भाजपा एवं अन्य दलों को सीधा फायदा हुआ। इस चुनाव में जेजेपी का समर्थन कर तंवर ने भाजपा व कांग्रेस को कुछ सीटों पर सीधा नुकसान पहुंचाया। उधर दिल्ली से बाहर पैर पसार रही आप को हरियाणा के लिए अशोक तंवर एक बड़ा और मजबूत चेहरा नजर आए। काफी सोच विचार व मशक्कत के बाद तंवर ने जब आप को ज्वाइन किया तो अचानक प्रदेश में यह पार्टी विकल्प के तौर पर उभरने लगी। तंवर समर्थकों ने आप के लिए जनसंपर्क अभियान शुरू कर दिया। पंजाब में आप की सरकार आने के बाद यह तय हो गया था कि अब अगला लक्ष्य हरियाणा है जहां तंवर जैसे सरीखे नेता पार्टी में जान डालने की क्षमता रखते हैं। आप के मुखिया एवं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल यह बखूबी जानते हैं कि तंवर में वह तमाम खुबियां है जो जमीनी स्तर के नेता में होती है। इसलिए उन्हें 2024 चुनाव की तैयारी के मददेनजर चुनाव कैंपेन कमेटी को चेयरमैन बनाया है। डॉ. सुशील गुप्ता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है। यह फैसला किस रणनीति के तहत लिया गया है। यह आने वाला समय बताएगा इतना जरूर है कि  जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आएगा तंवर की मौजूदगी ही पार्टी की दिशा और दशा तय करेगी। पिछले दिनों हरियाणा के जींद जिले में निकाली तिरंगा यात्रा में भीड़ जुटाने के लिए तंवर को आगे आना पड़ा। कुल मिलाकर अशोक तंवर हरियाणा की राजनीति में ऐसे नेता के तौर पर स्थापित हो चुके हैं जो छोटे छोटे टुकड़ों में राजनीति का मिजाज बदलने की क्षमता रखते हैं। 2019 के चुनाव में कांग्रेस का सत्ता से कुछ कदम दूर रह जाना और  जेजेपी में जान आ जाना  यह तंवर की मौजूदगी का असर था।

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