राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बावल की छात्राएं बता रही हैं
अपने माता-पिता के जीवन से जुड़ी संघर्ष की कहानियां
मां इसलिए नहीं पढ़ पाई नानी बीमार रहती थी, पिता पर बचपन में ही जिम्मेदारी आ गईं
मै स्कूल में 10 वीं की छात्रा हूं। मेरे पापा समुंद्र सिंह 5 वीं पास है। आप जानना चाहते हैं कि वो आगे क्यों नहीं पढ़ पाए। उन पर परिवार की जिम्मेदारी पड़ गई थी। लेकिन वे अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर कामयाबी की राह पर चलने का रास्ता दिखाते हैं। जब मै तीन साल की थी मेरी तीन बहनें स्कूल में जाती थी। मै भी उनके साथ चली जाती लेकिन। जब मै उनके साथ चली जाती तो उनके सर उन्हें कहते कि जाओ पहले अपनी बहन को घर छोड़कर आओ। एक बहन मुझे घर छोड़कर चली जाती ओर मै रो पड़ती थी। फिर मै अपने पापा से कहती की पापा मै भी स्कूल में जाऊंगी तो मेरे पापा कहते की चल मै तुझे पढ़ाता हूं लेकिन मै तो स्कूल जाना चाहती थी। जब मै चार साल की थी तब मेरे पापा ने हाथ जोड़कर मेरा स्कूल में नाम लिखवा दिया।फिर जब मै स्कूल जाती तो मेरे पापा मेरे साथ जाते थे। छुट्टी होती थी। मुझे लेने आते थे। जब मै एक साल की थी तब मम्मी सामोति बहुत बीमार हो गईँ। तब पापा ने मेरी मां की तरह देखभाल की। बड़ी होकर मैने जाना पिता हमेशा नीम के पेड़ की तरह होता है जिसके पत्ते भले ही कड़वे हो गए वो छाया हमेशा ठंडी देता है। मम्मी 8 वीं पास है। वह आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन नानी दिमागी तौर पर बीमार थी। इस कारण वह नहीं पढ़ पाईं। नानाजी खेत में काम करते थे। घर आकर पशु भी संभालते थे और वे थक जाते थे। मम्मी से यह सबकुछ नहीं देखा गया। इसलिए उसने पढ़ाई छोड़ दी। मेरे माता-पिता ने हमेशा हमें बेटों से बढ़कर चाहा। पिताजी बीमार रहने लगे। मां ने एक छोटी सी दुकान खोल ली। मै पढ़ाई के साथ साथ मां का सहयोग करती थी। जब हमें ज्यादा समोसे बनाने के ऑर्डर मिलते थे तो मै सुबह जल्दी उठकर मां के साथ समोसे बनवाती और समय पर स्कूल पहुंच जाती थी। मै नमन करती हूं मेरे शिक्षकों को जिन्होंने मुझे अपने माता-पिता के जीवन के बारे में गहराई से जाने का मौका दिया। मेरा यह लेख मेरे जीवन की कहानी बनकर मुझे प्रेरित करता रहेगा।