राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बावल की छात्राएं बता रही हैं
मेरा नाम निकिता है। पिता का नाम धर्मपाल सिंह एवं माताजी का नाम कविता देवी है। पापा बचपन से ही दिव्यांग है और मम्मी जन्म से ही नहीं देख पाती थी। उनका बचपन और जीवन हर पल किस दौर से गुजरा होगा। यह बताने की जरूरत नहीं है। जब मै उनकी दुनिया में आई तो वे बहुत खुश हुए। पापा ने मिठाईयां बांटी। जब मै बड़ी होकर स्कूल जाने लगी तो पापा खुद मुझे छोड़ने जाते और फिर अपनी छोटी सी दर्जी की दुकान पर आकर बैठ जाते। वे खुद अपने लिए नए कपड़े नहीं सिलवाते थे। हमें किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं हो वह दिन रात मेहनत करते। मम्मी भी जीवन की अनेक चुनौतियों से लड़ती हुई आ रही है। शादी के बाद वह पारिवारिक हालातों से लड़ती रही। पापा के पास घर चलाने के लिए महज 400 रुपए थे। एक लाख रुपए का कर्जा था। दोनों ने दिन रात खुब मेहनत की। मम्मी जितना मदद कर पाती थी वह करती थी। मेरे बाद छोटी बहन का जन्म हुआ। दोनों बहुत खुश हुए। उसके बाद एक बहन ओर दुनिया में आई लेकिन वह दूसरे दिन ही हमसे विदा हो गईं। उसके बाद मेरा छोटा भाई हम सभी के लिए खुशियां लेकर आया। पापा बताते हैं कि पहले वे किसी दुकान पर नौकरी करते थे। वहां चोरी होने से बहुत बड़ा नुकसान हो गया। उसकी वजह से उन्हें नौकरी छोड़कर वापस अपने गांव आना पड़ा। यह लेख मेरी जिंदगी की प्रेरणा है जो जीवन भर मुझे कड़ी मेहनत और चुनौतियों से लड़ने के लिए हौसला देता रहेगा। जीवन में कभी नहीं सोचा था कि एक दिन अपने माता-पिता के जीवन को अपनी कलम से लिखने का सौभाग्य मिलेगा। यह सब मेरे स्कूल के संस्कार और मेरे गुरुजनों का आशीर्वाद है। दैनिक रणघोष समाचार पत्र ने यह पहल शुरू करके सही मायनों में समाज को जगाने और एक बेहतर दिशा देने का काम किया है।