आठ महीने के नवजात भी हो रहे हैं कोरोना से संक्रमित

सरकार भले ही कहे कि कोरोना टीके की कोई कमी नहीं है, लेकिन 45 साल से कम के लोगों को इसकी ज़रूरत नहीं है और उन्हें नहीं दिया जाएगा, सच तो यह है कि कोरोना किसी उम्र के लोगों को नहीं बख़्श रहा है। दिल्ली के अस्पतालों में आठ महीने के बच्चों को भी तेज़ बुखार, न्यूमोनिया और कोरोना के दूसरे लक्षणों के साथ भर्ती कराया जा रहा है। पहले यह माना जाता था कि कोरोना संक्रमण बच्चों में नहीं फैल रहा है, लेकिन ताज़ा आँकड़े इसे ग़लत साबित करते हैं।

कोरोना से कोई सुरक्षित नहीं

जब यह माँग उठी कि 18 साल से ज़्यादा की उम्र के हर आदमी को कोरोना का टीका दिया जाए तो सरकार ने कहा कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। कोरोना सिर्फ 45 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों को हो रहा है। लेकिन अब ताज़ा आँकड़ों से पता चलता है कि कोरोना संक्रमण की कोई उम्र नहीं है। लोक नायक अस्पताल के स्वास्थ्य निदेशक सुरेश कुमार ने कहा,”हमारे अस्पताल में आठ बच्चे कोरोना के लक्षणों के साथ दाखिल हुए हैं। उनमें से एक आठ महीने का है, दूसरे कुछ बच्चे 12 साल से कम उम्र के हैं।”

अस्पतालों में कोरोना पीड़ित बच्चे

उन्होंने आगे कहा, “उनमें तेज़ बुखार, न्यूमोनिया, स्वाद की कमी, डिहाइड्रेशन और कोरोना के दूसरे लक्षण हैं।” सर गंगा राम अस्पताल के डॉक्टरों ने भी कहा था कि वहाँ भी कुछ बच्चों को कोरोना के लक्षणों के साथ भर्ती कराया गया है। इस अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर धीरेन गुप्ता ने कहा है कि उन्हें ‘रोज़ाना 20- 30 कॉल मिल रहे हैं और वह टेली-कॉन्फ्रेंसिंग और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से अभिभावकों को बच्चों के बारे में सलाह देते हैं।’

‘बच्चों का इलाज कठिन’

गुड़गाँव स्थित फ़ोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट के बाल रोग विभाग के निदेशक डॉक्टर कृषण चुग ने कहा कि कोरोना से पीड़ित बच्चों का इलाज़ बड़ों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने कहा, “चूंकि पिछले साल कोरोना से अधिक बच्चे संक्रमित नहीं हुए थे, लिहाज़ा किसी अस्पातल में बच्चों के लिए अलग कोरोना वार्ड नहीं है। यह दिक्क़त भी है कि स्टेरॉयड्स या रेमडिसिवर जैसी एंटी- वायरल दवाएं बच्चों को नहीं दी जा सकती हैं। ऐसे में बच्चों को सांस के रोग, खांसी और बुखार की दवा से इलाज किया जा रहा है।

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