चौड़ी छाती वाले आज बेहद बौने नजर आ रहे हैं..

“इस महामारी ने जरूर हमें दुबक जाने पर मजबूर किया है, लेकिन साथ ही इसने हमारे सामने नेताओं की असलियत भी उजागर कर दी है।”


ऐसे समय जब महामारी हम सब को रौंद रही है, यह सरकार कहीं गुम हो गई है। लगातार दो आम चुनावों में जीत दर्ज कर मजबूत दिखने वाली यह सरकार लोगों की सबसे बड़ी जरूरत के समय ही नजर नहीं आ रही है। पिछले साल इसी महामारी को भगाने के नाम पर जनता से थाली बजवाने और पटाखे जलवाने वाले कर्णधार मानो छुट्टी पर चले गए हैं। कुछ मंत्री और बड़े सलाहकार यदा-कदा अपना मुंह खोलते हैं, लेकिन वह अक्सर श्रेय लेने के लिए होता है, जबकि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। उनमें दृढ़ निश्चय और भरोसे का अभाव स्पष्ट है। और हम उनकी बातों पर भरोसा ही क्यों करें जो हमें इस हाल में पहुंचाने के लिए जिम्मेदार हैं। क्या उन्होंने नहीं कहा था कि हमने वायरस पर विजय पा ली है? या हम वायरस के खिलाफ वैक्सीनेशन की मुहिम में दुनिया का नेतृत्व करेंगे? या फिर महामारी के खिलाफ लड़ाई भारत में आखिरी चरण में है?

उनकी कही इन बातों में कुछ भी सच नहीं था। उनकी यह अपरिपक्व उम्मीदें और उनका आत्मसंतोष एक तरह का अपराध है, जिसकी भरपाई हम बड़ी कीमत देकर चुका रहे हैं। महामारी ने हमें तैयारी करने के लिए एक साल का वक्त दिया, लेकिन प्रचाररत शीर्ष नेतृत्व ने उसे यूं ही जाया कर दिया। वह सिर्फ अपनी छवि और ब्रांड चमकाने में लगा रहा। निस्संदेह उसने अपनी उर्जा चुनाव जीतने और सुपर-स्प्रेडर धार्मिक समारोह आयोजित करने में भी खर्च की। हरदम शेखी बघारने और आत्मनिर्भरता की बात कहने वाली केंद्र सरकार हमारे समय की सबसे बड़ी तबाही के सामने इतनी जल्दी आत्मसमर्पण कर देगी, यह देखना आश्चर्यजनक है। छोटी-छोटी बातों पर गर्जना करने वाली यह सरकार हमेशा मौकापरस्त नजर आई। सरकार का गुनाह इतना स्पष्ट होने के बावजूद दुर्भाग्यवश उसमें पश्चाताप का कोई भाव नजर नहीं आता है। ऑक्सीजन प्लांट नहीं लगाए गए, वैक्सीन का उत्पादन और उसकी सप्लाई बढ़ाने के उपाय नहीं किए गए, यहां तक कि कोविड-19 पर विशेषज्ञ समूह की बैठकें भी समय पर नहीं आयोजित की गईं। इतना कुछ हो जाने के बाद भी न तो किसी की जिम्मेदारी तय की गई है, न किसी को हटाया गया है। सब कुछ सामान्य दिनों की तरह चल रहा है। बल्कि राजनीति ने महामारी पर भी प्राथमिकता हासिल कर ली है। पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा को देखते हुए वहां केंद्रीय टीम भेजी गई और नेताओं ने धरना दिया। असम में मुख्यमंत्री पद को लेकर भी कई दिनों तक खींचतान मची रही।दुर्भाग्यवश जब बारी कोरोना से लड़ने की आई तो यह प्रतिबद्धता कहीं नहीं दिखी। इस महामारी ने जरूर हमें दुबक जाने पर मजबूर किया है, लेकिन साथ ही इसने हमारे सामने नेताओं की असलियत भी उजागर कर दी है। चौड़ी छाती दिखाने वाले जब असली समय आया तो बेहद बौने और कमजोर निकले।

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