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जाने अंबिकापुर कैसे बना भारत का सबसे स्वच्छ छोटा शहर


रणघोष खास. एक जागरूक नागरिक की कलम से


हम सबको अपने आसपास सफाई रखनी चाहिए और दूसरे लोगों को भी साफ-सफाई रखने के लिए प्रेरित करना चाहिए, पूरे देश में साफ-सफाई को लेकर वैसे तो सरकारों के द्वारा समय-समय पर अलग-अलग योजनाएं लाई जाती है। हम आपको एक ऐसी शख्सियत के बाई में बताने जा रहे है जिन्होंने स्वच्छता की अहमियत समझते हुए एक छोटे से शहर जो कभी कूड़े का ढेर हुआ करता था उसे देश का सबसे छोटा स्वच्छ शहर बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया। हम बात कर रहे है दो साल पहले छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा जिले की कलेक्टर ऋतु सैन की। आइये जानते है उन्होंने अपने जिले को सबसे स्वच्छ बनाने के लिए क्या कदम उठाए
2003 बैच की आईएएस अधिकारी रितु सेन जिन्होंने दो साल पहले छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा जिले के छोटे से शहर अंबिकापुर में ट्रांसफर हुआ। जनसंख्या के हिसाब से यहां की जनसंख्या मात्र 1,40,000 है। ऋतू जब कलेक्टर पहली बार अंबिकापुर पहुंची तो उनका सामना सबसे पहले यहां फैले हुए कूड़े के ढेर से हुआ जिसमें से बहुत गंदी बदबू आ रही थी। जिसके बाद उनके मन में ये विचार आया कि अगर अंबिकापुर में ऐसे ही गंदगी फैली रही तो उनके शहर का नाम हर जगह बदनाम होगा।

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उन्होंने मन ही मन ठान लिया था कि वो शहर की सफाई करने के लिए कुछ ना कुछ जरूर करेंगी लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी समस्या ये थी कि इस छोटे से शहर में सफाई रखने के लिए बहुत ही कम संसाधन उपलब्ध थे। उनको इस बात का जरूर विश्वास था कि लोगों को सफाई रखने के लिए जागरूक करना होगा और जब सभी लोग इसमें अपनी भागीदारी निभाएंगे तो कुछ भी काम मुश्किल नहीं रहेगा।
ऐसी हुई सफाई अभियान की शुरुआत
कलेक्टर ऋतु सैन ने अगले दो महीने के भीतर ही अंबिकापुर के सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ मीटिंग और आगे सफाई करने के लिए एक बेहतरीन योजना बनाई। हर स्वच्छता अभियान की तरह उन्होंने सबसे पहले ठोस और तरल संसाधन प्रबंधन के मॉडल को अपनाया, उन्होंने सफाई कर्मचारियों के अलावा शहर के नागरिकों को भी इसमें शामिल किया। इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले उन्होंने स्वच्छता अभियान की शुरुआत एक वार्ड से की थी। उस वार्ड में सेल्फ हेल्प ग्रुप में से महिलाओं को इस प्रोजेक्ट के लिए चुना गया, हर टीम में तीन तीन महिलाओं को रखा, इन सभी टीमों को वार्ड में मौजूद 100-100 घरों से कूड़ा इकट्ठा करके उसे अलग-अलग करके प्रबंधन के लिए आगे भेज दिया जाता था। कूड़े को अलग-अलग करने के लिए सबसे पहले सभी महिलाओं को उचित ट्रेनिग दी गई जिससे कि वो आगे लोगों को भी बता सकें।
कचरे को इकट्ठा करने के बाद किया जाता है अलग

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जिस वार्ड से स्वच्छता अभियान की शुरुआत की गई थी वहां सबसे पहले कचरे को अलग-अलग करने का केंद्र खोला गया गया। यहां कूड़ा एकत्रित करने के बाद सभी महिलाएं उस कूड़े को जैविक और अजैविक के हिसाब से 24 कैटेगरी में अलग करती है। इसके अलावा हर घर में निवासियों को अजैविक कूड़े के लिए लाल रंग रंग और जैविक कूड़े के लिए हरे रंग के कचरे के डिब्बे दिये गए। कचरे को अलग करने के बाद उन्हें रीसायकल होने वाले और रीसायकल ना होने वाली कैटेगरी में बांटा गया, उसके बाद धातु, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और प्लास्टिक के अलगाव हेतु भेज दिया जाता था। रीसायकल समान निर्माताओं को कच्चे माल के रूप में बेच दिया जाता था जिससे कमाई भी होती थी। इन सभी तरीकों को अपनाकर अंबिकापुर ना केवल राज्य बल्कि देश में सबसे स्वच्छ छोटा शहर बन चुका है और जहां पहले कूड़े का ढेर था अब वहां एक खूबसूरत पार्क बन चुका है और निश्चित रूप से इस सब में आईएएस रितु सेन के बेहतरीन प्रयास को हर कोई सलाम करता है।

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