मीडिया का महापाप धोने के लिए महाकुंभ तुम्हे वापस आना पड़ेगा

रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

क्या आस्था, धर्म और अध्यात्म के नाम पर कवरेज करने वाला मीडिया का एक बड़ा तबका अब मानसिक तौर पर  बिकाऊ खबरों के बाजार में अपनी बोटी बोटी की बोली लगाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं की धर्म के नाम पर पांखड का ऐसा तांडव चल रहा है जिसे किसी भी समय चैनल के स्टूडियो में कथित भगवाधारियों का आपस में एक दूसरे को पीटना, अभद्र भाषा बोलना, गाली गलौज करना जैसे घिनौनी हरकतों के तोर पर आए दिन भडकाऊ ड्रामें की शक्ल में  देख सकते हैं। इसी तरह प्रयागराज में 26 फरवरी 2025 तक चले महाकुंभ में सनातन धर्म की जड़ों तक पहुंचने की बजाय इन मीडिया वालों की नजरें माला बेच रही नीली आंखों वाली युवती की सुंदरता को ही सनातन की गहराई समझ रही थी। बालीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी का भगवा पहनावा देखकर इन मीडिया वालों के लिए वह राजमाता बनी हुई थी। सनातन के रास्ते सत्य को समझने जानने के लिए निकले आईटीएन अभय ग्रेवाल एक तरह से अभी भी चैनलो की टीआरपी व यूटयूबर के लिए सबक्राइब की बेहताशा भूख बने हुए हैं। इसलिए जहा भी यह युवा अपनी धुन में नजर आ जाए वहा पहले से ही शिकार की तलाश में भेडिया की तरह इधर उधर भटकते पत्रकारों के लिए वे एक तरह से नाश्ते में आमलेट, समोसा, लंच में शाही पनीर, कढाई चिकन और रात होते ही शानदार जाम के साथ मटन की तरह नजर आते हैं। पिछले दिनों खुद को एक जिम्मेदार मीडिया चैनल कहने वाले स्टूडियो में जिसने भी अभय ग्रेवाल के साथ  हुई शर्मसार घटना को देखा तो भगवाधारियों का मूल विकृत चेहरा ओर पत्रकारों की असलियत स्वत सामने आ गईं। इनकी हरकतों को देखकर बेहूदा शब्द भी शर्मसार हो रहे थे की उनसे भी नीचे कोई इतना गिर सकता है।  आइए अब हम आपको बताते हैं की मीडिया की दिन प्रतिदिन बढती जा रही बाजारू ओर किसी भी हद तक गिर जाने की हरकतों के कारण देश की प्रतिष्ठा विश्व पटल पर भी धूमिल हो रही है।  कुछ समय पहले द फेथ एंड मीडिया इनीशिएटिव  नामक संस्था ने दुनिया भर के छह महादेशों के अठारह देशों में करीब पिचानवे सौ  लोगों से जवाब इकट्ठा किए। इस अध्ययन को हिंदी, अंग्रेजी, स्पेनिश, चीनी, फ्रेंच, अरबी भाषाओं में करवाया गया था और इसमें दुनिया के सभी प्रमुख धर्म शामिल किये गए।यह सर्वे इन देशों में आम लोगों की राय को सामने लाता है और फिर उनकी तुलना इन देशों के पत्रकारों के नजरिये से करता है.यह सर्वेक्षण ऑनलाइन किया गया था और इसे गोपनीय रखा गया था। साम्यवादी और सेक्युलर देश चीन में भी जवाब देने वाले ज्यादातर लोगों ने कहा कि वे आध्यात्मिक या आस्थावान हैं. हालांकि जरूरी नहीं कि वे धार्मिक ही हों। सर्वे के मुताबिक, भारत एक अत्यधिक धार्मिक देश है, जहां सर्वे में शामिल हर दस में से सात लोगों ने कहा कि वे या तो आध्यात्मिक या आस्तिक हैं या किसी धर्म या धर्म के किसी पंथ के प्रति विश्वास रखते हैं। सर्वे रिपोर्ट में जो तस्वीर सामने आई। उसमें सार्वभौमिक सहमति इस बात पर रही की आस्था और धर्म मानवीय पहचान का एक हिस्सा ही हैं। भारत का मीडिया किसी व्यक्ति के आस्था और धर्म को सही तरह से दर्शाने के लिए नियमित आधार पर अच्छा काम नहीं कर रहा है और वास्तव में यह रूढ़िवादी धारणाओं से लडने के बजाय उन्हें कायम रख रहा है। ऐसे में मीडिया को अंदर बाहर से साफ सुथरा करने के लिए महाकुंभ तुम्हे एक बार वापस जरूर आना चाहिए।